SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १, ९-६, १०. ] चूलियाए उक्कस्सट्टिदीए मिच्छत्तं पारस वाससदाणि आबाधा ॥ ८ ॥ पण्णारससागरोत्रमकोडाकोडीमेत्तट्ठिदिसमयपबद्धम्हि कम्मपदेसाणं मज्झे सुड्डु जद जहदिओ कम्मपदेसा होज्ज तो वि' समयाहियपण्णारसवाससदमे तट्ठिदीओ होज्ज, णो हेट्ठा, तत्थ तहाविह परिणामपदेसाणमसंभवादो । तेरासियकमेण पण्णारसवाससदमेत आबाधाएं आगमणं उच्चदे- तीसं सागरोवमकोडाकोडीमे तकम्मद्विदीए जदि आबाधा तिष्णि वाससहस्साणि मेत्ताणि लब्भदि, तो पण्णारससागरोवमकोडा कोडिमेत्तद्विदीए किं लभामो ति फलेण इच्छं गुणिय पमाणेणोवट्टिदे पण्णारसवाससदमेत्ता आबाधा होदि । आबाधूर्णिया कम्मट्टी कम्मणिसेो ॥ ९ ॥ सुगममेदं । मिच्छत्तस्स उक्कस्सओ द्विदिबंधो सत्तरि सागरोवमकोडाकोडीओ ॥ १० ॥ [ १५९ उक्त सातावेदनीय आदि चारों कर्म प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिका आबाधाकाल पन्द्रह सौ वर्ष है ॥ ८ ॥ पन्द्रह कोड़ाकोड़ी सागरोपमप्रमाण स्थितिवाले समय प्रबद्धमें कर्मप्रदेशोंके भीतर यदि अच्छी तरह जघन्य स्थितिवाले कर्म प्रदेश होवें, तो भी एक समय अधिक पन्द्रह सौ वर्षप्रमाण स्थितिवाले कर्म-प्रदेश ही होंगे, इससे नीचेकी स्थितिके नहीं होंगे; क्योंकि, उन कर्म प्रकृतियोंमें उस प्रकारके परिमाणवाले प्रदेशोंका होना असंभव है । अब त्रैराशिक क्रमसे पन्द्रह सौ वर्षप्रमाण आबाधाके लाने की विधि कहते हैं- यदि तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपमप्रमाण कर्म-स्थितिकी आबाधा तीन हजार वर्षप्रमाण प्राप्त होती है, तो पन्द्रह कोड़ाकोड़ी सागरोपमप्रमाण कर्म-स्थितिकी आबाधा कितनी प्राप्त होगी, इस प्रकार फलराशिसे इच्छाराशिको गुणित करके प्रमाणराशिसे अपवर्त्तित करनेपर १५X३००० पन्द्रह सौ वर्षप्रमाण आबाधा प्राप्त होती है । = १५०० वर्ष | ३० उक्त कर्मो के आबाधाकालसे हीन कर्मस्थितिप्रमाण उन कर्मोंका कर्म-निषेक होता है ॥ ९ ॥ यह सूत्र सुगम है । मिथ्यात्वकर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरोपम है ॥ १० ॥ १ प्रतिषु ' सो वि ' इति पाठः । २ सप्ततिर्मोहनीयस्स ॥ त. सू. ८, १५, सतरि दंसणमोहे । गो. क. १२८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy