________________
Jain Education International
(पु. ५ प्रस्ता. पृ. १३ इ)
मार्गणास्थानोंकी अपेक्षा जीवोंके अन्तर, भाव और अल्पबहुत्वका प्रमाण.
अन्तर नाना जीवोंकी
मार्गणा
मार्गणाके अवान्तर भेद
एकजीवकी अपेक्षा
अपेक्षा
भाव
अल्पबटुत्व
जघन्य ।
उत्कृष्ट
जघन्य
उत्कृष्ट
गुणस्थान
प्रमाण
निरन्तर
ओघवत्
ओघवत्
ओघवत्
ओघवत्
ओघवत्
- मिष्याष्टि नरकगति । असंयतसम्यग्दृष्टि
सासादनसम्यग्दृष्टि सम्याग्मिण्याइष्टि
एक समय पर
उपशामक अपूर्वकरणसे असंयतसम्यग्दृष्टि तक मिथ्याष्टि
पूर्वकोटीपृथक्त्वसे अधिक एक हजार
सागरोपम
असंख्यातगणित
निरन्तर
तिर्यचगात
मिग्याष्टि सासादनादि चार गुणस्थान
ओघवत्
शुरभवग्रहण
औदयिक
गुणस्थानभेदाभाव
अल्पनहुन्वाभाव
अनन्तकालात्मक असंख्यात पुगलपरिवर्तन. असंख्यात लोक
मिष्यादृष्टि सासादनसम्यग्दृष्टि सम्यग्मिच्याराष्टि असंयतसम्यग्दष्टि
निरन्तर ओघवत् ।
१ गतिमार्गणा
निरन्तर
ओघवत्
ओघवत्
ओघनत्
मनुष्यगति
For Private & Personal Use Only
ओघवत् पूर्वकोटीपृथक्त्वसे अधिक दा हजार सागरोपम
निरन्तर
संयतासंयत प्रमसंयत अप्रमत्तसंयत चागे उपशामक चारों क्षपक सयोगिकेवली अयोगिकेवली
ओघवत्
अन्तर्मुहूर्त
"
तथा
सर्वगुणस्थान
पंचेन्द्रियवत्
देशोन दो हजार
सागरोपम
ओघवत्
औपशमिक
मिप्यारष्टि असंयतसम्यग्दृष्टि
|
निरन्तर
पूर्वकोटीपृथक्त्वसे अधिक दो हजार सागरोपम ओघवत्
देवगति
सासादनसम्यग्दृष्टि सम्यग्मिण्यारष्टि
ओघवत्
क्षायिक
२ इन्द्रियमार्गणा
एकेन्द्रिय
निरन्तर
निरंतर
ओघवत्
. विकलेन्द्रिय
www.jainelibrary.org