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छेक्खडागमे जीवट्ठाण [१, ८, २९९. वेदगसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ २९९ ॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । तेउलेस्सिय-पम्मलेस्सिएसु सव्वत्थोवा अप्पमत्तसंजदा ॥३०॥ कुदो ? संखेज्जपरिमाणत्तादो । पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा ॥ ३०१ ॥ को गुणगारो ? दो रूवाणि । संजदासजदा असंखेज्जगुणा ॥३०२॥
को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि ।
सासणसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥३०३ ॥
को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । कुदो ? सोहम्मीसाण-सणक्कुमारमाहिंदरासिपरिग्गहादो।
कापोतलेश्यावालोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ २९९ ॥
गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है। तेजोलेश्या और पद्मलेश्यावालोंमें अप्रमत्तसंयत जीव सबसे कम हैं ॥ ३०० ॥ क्योंकि, उनका परिमाण संख्यात है।
तेजोलेश्या और पद्मलेश्यावालोंमें अप्रमत्तसंयतोंसे प्रमत्तसंयत जीव संख्यातगुणित हैं ॥ ३०१॥
गुणकार क्या है ? दो रूप गुणकार है।
तेजोलेश्या और पालेश्यावालोंमें प्रमत्तसंयतोंसे संयतासंयत जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ ३०२॥
गुणकार क्या है ? पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है।
तेजोलेश्या और पद्मलेश्यावालोंमें संयतासंयतोंसे सासादनसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ ३०३॥
गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है, क्योंकि, यहां पर सौधर्म-ईशान और सनत्कुमार-माहेन्द्र कल्पसम्बन्धी देवराशिको ग्रहण किया गया है।
१ तेजःपालेश्यानां सर्वतः स्तोका अप्रमत्ताः । स. सि. १.४. २ प्रमत्ता: संख्येयगुणाः । स. सि. १, ८. ३ एवमितरेषां पंचेन्द्रियवत् । स. सि. १,८.
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