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________________ ३३२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं ...[ १, ८, २९०. लेस्साणुवादेण किण्हलेस्सिय-णीललेस्सिय-काउलेस्सिएसु सव्वत्थोवा सासणसम्मादिट्ठीं ॥ २९० ॥ सुगममेदं । सम्मामिच्छादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ २९१ ॥ को गुणगारो ? संखेज्जसमया । असंजदसम्मादिट्री असंखेज्जगुणा ॥ २९२ ॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । कुदो ? साभावियादो । मिच्छादिट्ठी अणंतगुणा ॥ २९३ ॥ को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो, सिद्धेहि वि अणंतगुणो, अणंताणि सव्वजीवरासिपढमवग्गमूलाणि । असंजदसम्मादिडिट्ठाणे सव्वत्थोवा खइयसम्मादिट्ठी ।। २९४ ॥ लेश्यामार्गणाके अनुवादसे कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्यावाले जीवोंमें सासादनसम्यग्दृष्टि सबसे कम हैं ॥ २९० ।। यह सूत्र सुगम है। कृष्ण, नील और कापोतलेश्यावालोमें सासादनसम्यग्दृष्टियोंसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥ २९१ ॥ गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है । कृष्ण, नील और कापोतलेश्यावालोंमें सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंसे असंयतसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ।। २९२ ॥ गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है, क्योंकि, यह स्वाभाविक है। कृष्ण, नील और कापोतलेश्यावालोंमें असंयतसम्यग्दृष्टियोंसे मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तगुणित हैं ॥ २९३ ॥ गुणकार क्या है ? अभव्यसिद्धोंसे अनन्तगुणित और सिद्धोंसे भी अनन्तगुणित राशि गुणकार है, जो सर्व जीवराशिके अनन्त प्रथम वर्गमूलप्रमाण है। कृष्ण, नील और कापोतलेश्यावालोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टि सबसे कम हैं ॥ २९४ ॥ १ लेश्यानुवादेन कृष्णनीलकापोतलेश्यानां असंयतवत् । स. सि. १, ८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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