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________________ १, ८, ९९.] अप्पाबहुगाणुगमे देव-अप्पाबहुगपरूवणं (२८५ वेदगसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ ९६॥ कुदो ? तत्थुप्पज्जमाणखइयसम्मादिट्ठीहितो संखेज्जगुणवेदगसम्मादिट्ठीणं तत्थुप्पत्तिदंसणादो। अणुदिसादि जाव अवराइदविमाणवासियदेवेसु असंजदसम्मादिहिट्ठाणे सव्वत्थोवा उवसमसम्मादिट्टी ॥ ९७ ॥ ___ कुदो ? उवसमसेडीचडणोयरणकिरियावावदुवसमसम्मत्तसहिदसंखेज्जसंजदाणमेथुप्पण्णाणमंतोमुहुत्तसंचिदाणमुवलंभा । खइयसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ९८ ॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागस्स संखेज्जदिभागो। को पडिभागो ? संखेज्जुवसमसम्मादिट्ठिजीवा पडिभागो। वेदगसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ ९९ ॥ कुदो ? खइयसम्मत्तेणुप्पज्जमाणसंजदेहितो वेदगसम्मत्तेणुप्पज्जमाणसंजदाणं संखेज उक्त विमानों में क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि देव संख्यातगुणित हैं ॥ ९६ ॥ क्योंकि, उन आनतादि कल्पवासी देवोंमें उत्पन्न होनेवाले क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे संख्यातगुणित वेदकसम्यग्दृष्टियोंकी वहां उत्पत्ति देखी जाती है। नव अनुदिशोंको आदि लेकर अपराजित नामक अनुत्तरविमान तक विमानवासी देवोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टि सबसे कम हैं ॥९७॥ क्योंकि, उपशमश्रेणीपर आरोहण और अवतरणरूप क्रियामें लगे हुए, अर्थात् चढ़ते और उतरते हुए मरकर उपशमसम्यक्त्वसहित यहां उत्पन्न हुए, और अन्तर्मुहूर्तकालके द्वारा संचित हुए संख्यात उपशमसम्यग्दृष्टि संयत पाये जाते हैं। उक्त विमानोंमें उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे क्षायिकसम्यग्दृष्टि देव असंख्यातगुणित हैं ॥ ९८ ॥ गुणकार क्या है ? पल्योपमके असंख्यातवें भागका संख्यातवां भाग गुणकार है। प्रतिभाग क्या है ? संख्यात उपशमसम्यग्दृष्टि जीव प्रतिभाग है। उक्त विमानोंमें क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि देव संख्यातगुणित हैं ॥ ९९ ॥ क्योंकि, क्षायिकसम्यक्त्वके साथ मरण कर यहां उत्पन्न होनेवाले संयोंकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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