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________________ धवलांका गणितशास्त्र (२१) अपज का प्रमाण अ" में समानेवाले सरसप बीजोंकी संख्याके बराबर होगा और उत्कृष्टसंख्यात = स उ = अ प ज - १. पर्यालोचन- संख्याओंको तीन भेदोंमें विभक्त करनेका मुख्य अभिप्राय यह प्रतीत होता है- संख्यात अर्थात् गणना कहां तक की जा सकती है यह भाषामें संख्या-नामोंकी उपलब्धि अथवा संख्याव्यक्तिके अन्य उपायोंकी प्राप्ति पर अवलम्बित है। अतएव भाषामें गणनाका क्षेत्र बढ़ानेके लिये भारतवर्षमें प्रधानतः दश-मानके आधारपर संख्या-नामोंकी एक लम्बी श्रेणी बनाई गई । हिन्दू १०७ तककी गणनाको भाषामें व्यक्त कर सकनेवाले अठारह नामोंसे संतुष्ट होगये । १० से ऊपरकी संख्याएं उन्हीं नामोंकी पुनरावृत्ति द्वारा व्यक्त की जा सकती थीं, जैसा कि अब हम दश दश-लाख ( million million ) आदि कह कर करते हैं। किन्तु इस बातका अनुभव होगया कि यह पुनरावृत्ति भारभूत (cumbersome) है। बौद्धों और जैनियोंको अपने दर्शन और विश्वरचना संबंधी विचारोंके लिये १०० से बहुत बड़ी संख्याओंकी आवश्यकता पड़ी। अतएव उन्होंने और बड़ी बड़ी संख्याओंके नाम कल्पित कर लिये । जैनियोंके संख्यानामोंका तो अब हमें पता नही हैं', किन्तु बौद्धोद्वारा कल्पित संख्या १ जैनियों के प्राचीन साहित्यमें दीर्घ काल-प्रमाणोंके सूचक नामोंकी तालिका पाई जाती है जो एक वर्ष प्रमाणसे प्रारम्भ होती है। यह नामावली इस प्रकार है१ वर्ष | १७ अटटांग = ८४ त्रुटित २ युग = ५ वर्ष १८ अटट ,, लाख अटटांग ३ पूर्वाग = ८४ लाख वर्ष १९ अममांग " अटट ४ पूर्व = ,, लाख पूर्वांग २० अमम लाख अममांग ५ नयुतांग २१ हाहांग अमम ६ नयुत , लाख नयुतांग , लाख हाहांग ७ कुमुदांग ,, नयुत २३ इहांग ८ कुमुद लाख कुमुदांग २४ ह्ह ९ पद्मांग " लाख इहांग , कुमुद २५ लतांग १. पद्म , लाख पद्मांग " इहू ११ नलिनांग २६ लता , लाख लतांग "पद्म १२ नलिन , लाख नलिनांग २७ महालतांग लता १३ कमलांग ,, नलिन २८ महालता " लाख महालतांग १४ कमल , लाख कमलांग २९ श्रीकल्प = ,, लाख महालता १५ त्रुटितांग = , कमल ३० हस्तप्रहेलित = , लाख श्रीकल्प १६ त्रुटित = , लाख त्रुटितांग | ३१ अचलप्र = , लाख हस्तप्रहेलित यह नामावली त्रिलोकप्रप्ति (४-६ वीं शताब्दि) हरिवंशपुराण (८ीं शताब्दि) और राजवार्तिक (८वीं शताब्दि ) में कुछ नामभेदोंके साथ पाई जाती है। त्रिलोकप्रज्ञप्तिके एक उल्लेखानुसार अचलप्रका प्रमाण ८४ को ३१ वार परस्पर गुणा करनेसे प्राप्त होता है-अचलप -८४१ तथा यह संख्या ९० अंक प्रमाण होगी। किन्तु लघुरिक्थ तालिका (Logarithmic tables) के अनुसार ८४१ संख्या ६० अंक प्रमाण ही प्राप्त होती है। देखिये धवला, भाग ३, प्रस्तावना व फुट नोट, पृ३४.-सम्पादक. हाहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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