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________________ (१०) षट्खंडागमकी प्रस्तावना (४) चतुर्थच्छेद'-जितने वार एक संख्या उत्तरोत्तर १ से विभाजित की जा सकती है, उतने उस संख्याके चतुर्थच्छेद होते हैं । जैसे- क के चतुर्थच्छेद = चछे क = लरि ४ क। यहां लघुरिक्थका आधार ४ है। धवलामें लघुरिक्थसंबंधी निम्न परिणामोंका उपयोग किया गया है(१) लरि (म/न) = लरि म - लरि न (२) लरि (म. न ) = लरि म + लरि न (३) २ लरि म = म । यहां लघुरिक्थका आधार २ है। (४) लरि (कक)२ = २ क लरि क (५) लरि लरि (क)२ = लरि क + १ + लरि लरि क, (वाईं ओर) = लरि (२ क लरि क ) = लरि क + लरि २+ लरि लरिक = लरि क +१+ लरि लरि क । चूंकि लरि २ = १, जब कि आधार २ है। कक (६) लरि (क) = कक लरि कक (७) मानलो अ एक संख्या है, तो अ का प्रथम वर्गित-संवर्गित = अअ = ब ( मानलो) , द्वितीय , = बर्षे = भ , , तृतीय , = भभ = म , धवलामें निम्न परिणाम दिये गये हैं (क) लरि ब = अ लरि अ (ख) लरि लरि ब = लरि अ + लरि लरि अ (ग) लरि भ = ब लरि ब १ धवला, भाग ३, पृ. ५६. २ धवला, भाग ३, पृ. ६०. ३ धवला, भाग ३, पृ. ५५. ४ धवला, भाग ३, पृ. २१ आदि. ५ पूर्ववत्. ६ पूर्ववत् । यहाँ यह बात उल्लेखनीय है कि ग्रंथमें ये लघुरिक्थ पूर्णाकों तक ही परिमित नहीं हैं। संख्या क कोई भी संख्या हो सकती है। कक प्रथम वर्गितसंवर्गित राशि और ( क क ) द्वितीय वर्गितसवर्गित राशि है। ७ धवला, भाग ३, पृ. २१-२४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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