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________________ Jain Education International मार्गणास्थानोंकी अपेक्षा जीवोंके क्षेत्र, स्पर्शन और कालका प्रमाण, काल मार्गणाके स्पर्शन नानाजीबाँकी अपेक्षा एकजीवकी अपेक्षा मार्गणा अवान्तर भेद अतीत अनागतकालिक जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्टकाल तेतीस सागरोपम अनन्तकाल असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन सर्वकाल नरकगति | तिर्यचगति देशोनराजु ( उत्कृष्ट) सर्वलोक वर्तमानकालिक लोकका असंख्यातवां भाग सर्वलोक (लोकका " " र , असंख्यात बहु, (सर्वलोक लोकका असंख्यातवां , गतिमार्गणा र लोकका असंख्यातवां भाग सर्वलोक | लोकका , " " असंख्यात बहु, (सर्वलोक लोकका असंख्याता , तीन पल्योपम और पूर्वकोटीपृथक्व मनुष्यगति ( देवगति देशोन और राजु (उत्कृष्ट) तेतीस सागरोपम अनन्तकाल असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन संख्यात हजार वर्ष सर्वलोक लोकका असंख्याता भाग सर्वलोक [ एकेन्द्रिय विकलत्रय २ इन्द्रियमार्गणार पंचेन्द्रिय सर्वलोक लोकका असंख्यातवां भाग । अन्तर्मुहूर्त - एक हजार सागरोपम पूर्वकोटीपृथक्त्रसे आधेक __, असंख्यात बहु, (सर्वलोक " असंख्यात बहु, सर्वलोक देशोनराजु, सर्वलोक क्षुत्रभवग्रहण अनन्तकाल असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन (पांच स्थावरकायिक सर्वलोक For Private & Personal Use Only अन्तर्मुहूर्त - दो हजार सागरोपम पूर्व कोटीपृथक्त्वसे अधिक ३ कायमार्गणा सर्वलोक (लोकका असंख्यातवा भाग र , असंख्यात बहु" (सर्वलोक सर्वलोक (लोकका असंख्यातवां भाग ____, असंख्यात बहु, (सर्वलोक (सकायिक देशान राज, सर्वलोक एकसमय । अन्तर्मुहूर्त लोकका असंख्यातवां भाग लोकका असंख्याता भाग [ मनोयोगी वचनयोगी अनन्तकाल असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन ४ योगमार्गणा काययोगी , असंख्यात बहु, (सर्वलाक ,, असंख्यात बहु, (सर्वलोक सर्वलोक अन्तर्मुहूर्त | पल्योपमशतपृथक्व सागरोपमशतपृथक्त्व लोकका असंख्यातवां भाग लोकका असंख्यातवां भाग | देशोन और राज सर्वलोक (सीवेदी | पुरुषवेदी नपुंसकवेदी अनन्तकाल असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन ५ वेदमार्गणा अन्तर्मुहर्त देशोन पूर्वकोटी वर्ष "सर्वलोक " असंख्यातवां भाग " असंख्यात बहु, (सर्वलोक सर्वलोक (, असंख्यातवां भाग | लोकका असंख्याता भाग १ , असंख्यात बहु, " असंख्यात बहु, (सर्वलोक जघन्य (एकसमय अन्तर्मुहूर्त न्तमेंहूते काल । अपगतवेदी सर्वलोक 'सर्व कालस www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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