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१, ५, २२९.] कालाणुगमे इत्थिवेदिकालपरूवणं
(११७ कुदो ? पदरादो लोगपूरणादो वा कवाडस्स गमणामावा ।
एवं जोगमग्गणा समत्ता। वेदाणुवादेण इथिवेदेसु मिच्छादिट्ठी केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च सब्बद्धा ॥ २२७ ॥
कुदो ? सव्वद्धासु इत्थिवेदमिच्छादिट्ठीणं विरहाभावा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ २२८ ॥
तं जधा- एको इथिवेदगो सम्मामिच्छादिट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी संजदासजदो पमत्तसंजदो वा परिणामपच्चएण मिच्छत्तं गंतूण सव्वजहण्णकालमच्छिय अण्णगुणं गदो।
उक्कस्सेण पलिदोवमसदपुधत्तं ॥ २२९॥
तं जधा- एक्को अणप्पिदवेदो इत्थिवेदेसु उववण्णो । पुणो तत्थ इत्थिवेदेण पलिदोवमसदपुधत्तं परियट्टिय अणप्पिदवेदं गदो ।
क्योंकि, कार्मणकाययोगी सयोगिजिनका प्रतर और लोकपूरणसमुद्धातसे लौटकर कपाटसमुद्धातमें जानेका अभाव है।
इस प्रकार योगमार्गणा समाप्त हुई। वेदमार्गणाके अनुवादसे स्त्रीवेदियोंमें मिथ्यादृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल होते हैं ॥ २२७ ॥
क्योंकि, सभी कालोंमें स्त्रीवेदवाले मिथ्यादृष्टि जीवोंके विरहका अभाव है। एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ २२८ ॥
जैसे- कोई एक स्त्रीवेदी सम्यग्मिथ्यादृष्टि, अथवा असंयतसम्यग्दृष्टि, अथवा संयतासंयत, अथवा प्रमत्तसंयत जीव परिणामोंके निमित्तसे मिथ्यात्यको प्राप्त होकर सबसे जघन्य अन्तर्मुहूर्त कालप्रमाण रह करके अन्य गुणस्थानको चला गया।
उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल पल्योपमशतपृथक्त्व है ॥ २२९ ॥
जैसे-- अविवक्षित वेदवाला कोई एक जीव स्त्रीवेदियोंमें उत्पन्न हुआ। पुनः वहां पर स्त्रीवेदके साथ पल्योपमशतपृथक्त्व काल तक परिवर्तन करके अविवक्षित वेदको चला गया।
१ सीवेदेषु मिप्यादृष्ठेर्नानाजीनापेक्षया सर्वः कालः । स. सि. १, .. १ एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहूर्तः । स. सि. १, ८. ३ उत्कर्षेण पल्योपमशतपृथक्त्वम् । स. सि. १,८.
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