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________________ ४१४] छक्खंडागमे जीवहाणं [ १, ५, १६८. एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ १६८॥ एत्थ वि मरणेण विणा गुण-जोगपरावत्ति-वाघादे अस्सिदूण एगसमयपरूवणा जाणिय वत्तव्वा । उक्कस्सेण अंतोमुहत्तं ॥ १६९ ॥ उदाहरणं-एक्को सम्मामिच्छादिट्ठी अणप्पिदजोगे द्विदो अप्पिदजोगं पडिवण्णो । तत्थ तप्पाओग्गुक्कस्समंतोमुहुत्तमच्छिय अणप्पिदजोगं गदो । लद्धमंतोमुहुत्तं । चदुण्हमुवसमा चदुण्हं खवगा केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ १७०॥ उवसामगाणं वाघादेण विणा जोग-गुणपरावत्ति-मरणेहि णाणाजीवे अस्सिद्ग एगसमयपरूवणा कादव्या । खवगाणं मरण-वाघादेहि विणा जोग-गुणपरावत्तीओ दो चेव अस्सिदूण एगसमयपरूवणा परूवेदव्या । एक जीवकी अपेक्षा उक्त सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका जघन्य काल एक समय है ॥ १६८॥ यहां पर भी मरणके विना गुणस्थानपरावर्तन, योगपरावर्तन और व्याघात, इन तीनोंका आश्रय करके एक समयकी प्ररूपणा जान करके कहना चाहिए। एक जीवकी अपेक्षा उक्त सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥१६९ ॥ उदाहरण-अविवक्षित योगमें विद्यमान कोई एक सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव विवक्षित योगको प्राप्त हुआ। वहां पर अपने योगके प्रायोग्य उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त काल तक रह करके अविवक्षित योगको चला गया। इस प्रकारसे एक अन्तर्मुहूर्त काल प्राप्त हो गया। पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी चारों उपशामक और क्षपक कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय होते हैं ॥ १७०॥ उपशामक जीवोंके व्याघातके विना योगपरिवर्तन, गुणस्थानपरिवर्तन और मरणके द्वारा नाना जीवोंका आश्रय करके एक समयकी प्ररूपणा करना चाहिए। क्षपक जीवोंकी मरण और व्याघातके विना योगपरिवर्तन और गुणस्थानपरिवर्तन, इन दोनोंका आश्रय लेकर ही एक समयकी प्ररूपणा कहना चाहिए। १ एक जीवं प्रति जघन्येनैकः समयः । स, सि. १, ८. २ उत्कर्षेणान्तर्मुहूर्तः। स. सि. १, ८. ३ चतुर्णामुपशमकानां क्षपकाणां च नानाजीवापेक्षया एकजीवापेश्चया च जघन्येनैकः समयः। स.सि.१, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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