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________________ ३७१] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ५, ७१. सासणसम्मादिट्ठी केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णण एगसमयं ॥ ७१ ॥ कुदो ? उवसमसम्मादिट्ठीणं सत्तट्ठजणाणं उवसमसम्मत्तद्धाए एगसमओ अत्थि त्ति सासणगुणं' गदाणं तत्येगसमयमच्छिय मिच्छतं पडिवण्णाणमेगसमओवलंभादो । उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ ७२ ॥ कदो ? संखेज्जाणं उवसमसम्मादिट्ठीणमुवसमसम्मत्तद्धाए एगसमयमादि कादण जावुक्कस्सेण छ आवलियाओ अत्थि ति सासणं पडिवण्णाणं संखेज्जवाराणुसंचिदसासणद्धाणमंतोमुहुत्तत्तुवलंभा। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥७३॥ कुदो ? उवसमसम्माइट्ठिस्स उवसमसम्मत्तद्धाए एगसमओ अत्थि त्ति सासणं पडिवज्जिय विदियसमए चेव मिच्छत्तं पडिवण्णसासणस्स एगसमयदसणादो। उक्त तीनों प्रकारके मनुष्योंमें सासादनसम्यग्दृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय होते हैं ॥७१॥ क्योंकि, उपशमसम्यग्दृष्टि सात आठ जनोंके उपशमसम्यक्त्वके काल में एक समय शेष रहने पर सासादनगुणस्थानको प्राप्त हुए, तथा वहां पर एक समय रह कर मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले जीवोंके एक समयप्रमाण काल पाया जाता है। उक्त तीनों प्रकारके मनुष्योंमें सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥७२॥ क्योंकि, संख्यात उपशमसम्यग्दृष्टियोंके उपशमसम्यक्त्वके कालमें एक समयको भादि करके उत्कर्षसे छ आवलियां शेष रहने पर सासादनगुणस्थानको प्राप्त हुए जीवोंके संख्यात वारोंसे अनुसंचित सासादनगुणस्थानका काल अन्तर्मुहूर्त पाया जाता है । उक्त तीनों प्रकारके सासादनसम्यग्दृष्टि मनुष्योंका एक जीवकी अपेक्षा जघन्यकाल एक समय है ॥ ७३॥ क्योंकि, उपशमसम्यग्दृष्टि जीवके उपशमसम्यक्त्वके काल में एक समय शेष रहने पर सासादनगुणस्थानको प्राप्त होकर, दूसरे समयमें ही मिथ्यात्वगुणस्थानको प्राप्त हुए सासादनसम्यग्दृष्टि जीवके एक समयप्रमाण काल देखा जाता है। १ सासादनसम्यग्दृष्टेन नाजीवापेक्षया जघन्येनैकः समयः । स. सि. १, ४. २ प्रतिषु 'सासणाणं' इति पाठः। ३ उत्कर्षेणान्तर्मुहूर्तः। स. सि. १,८. ४ एकजीवं प्रति जघन्येनैकः समयः । स. सि. १, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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