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३१६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ५, १. तह आयारंगे वि वुत्तं
पंचत्थिया य छज्जीवणिकायकालदव्यमण्णे य ।
आणागेज्झे भावे आणाविचएण विचिणादि ॥ ६ ॥ तह गिद्धपिछाइरियप्पयासिदतच्चत्थसुत्ते वि 'वर्तनापरिणामक्रिया परत्वापरत्वे च कालस्य । इदि दव्वकालो परूविदो । जीवट्ठाणादिसु दव्वकालो ण वुत्तो ति तस्साभावो ण वोत्तुं सकिज्जदे, एत्थ छदव्यपदुप्पायणे अहियाराभावा । तम्हा दव्यकालो अत्थि त्ति घेत्तव्यो । जीवाजीवादिअभंगदव्यं वा णोआगमदव्यकालो । भावकालो दुविहो, आगमणोआगमभेदा । कालपाहुडजाणओ उवजुत्तो जीवो आगमभावकालो । दव्वकालजणिदपरिणामो णोआगमभावकालो भण्णदि । पोग्गलादिपरिणामस्स कधं कालववएसो? ण एस
उसी प्रकारसे आचारांगमें भी कहा है
पंच अस्तिकाय, षट्जीवनिकाय, कालद्रव्य तथा अन्य जो पदार्थ केवल आज्ञा अर्थात् जिनेन्द्र के उपदेशसे ही ग्राह्य हैं, उन्हें यह सम्यक्त्वी जीव आज्ञाविचय धर्मध्यानसे संचय करता है, अर्थात् श्रद्धान करता है ॥६॥
तथा गृद्धपिच्छाचार्यद्वारा प्रकाशित तत्त्वार्थसूत्रमें भी ‘वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व और अपरत्व, ये काल द्रव्यके उपकार हैं' इस प्रकारसे द्रव्यकाल प्ररूपित है। जीवस्थान आदि ग्रंथोंमें द्रव्यकाल नहीं कहा गया है, इसलिए उसका अभाव नहीं कह सकते हैं, क्योंकि, यहां जीवस्थानमें छह द्रव्योंके प्रतिपादनका अधिकार नहीं है। इसलिए 'द्रव्यकाल है' ऐसा स्वीकार करना चाहिए। .
अथवा, जीव और अजीव आदिके योगसे बने हुए आठ भंगरूप द्रव्यको नोआगमद्रव्यकाल कहते हैं।
विशेषार्थ-जीव और अजीवद्रव्यके संयोगसे कालके आठ भंग इस प्रकार होते हैं-१ एक जीवकाल, २ एक अजीवकाल, ३ अनेक जीवकाल, ४ अनेक अजीवकाल, ५ एक जीव एक अजीवकाल, ६ अनेक जीव एक अजीवकाल, ७ एक जीव अनेक अजीवकाल ८ और अनेक जीव अनेक अजीवकाल । (देखो मंगलसम्बन्धी आठ आधार, सत्प्र. १, पृ. १९) कालके निमित्तसे होनेवाले एक जीवसम्बन्धी परिवर्तनको एक जीवकाल कहते हैं । कालके निमित्तसे होनेवाले एक अजीवसम्बन्धी कालको एक अजीवकाल कहते हैं। इस प्रकारसे भाठों भंगोंका स्वरूप जान लेना चाहिए।
__ आगम और नोआगमके भेदसे भावकाल दो प्रकारका है। काल-विषयक प्राभृतका शायक और वर्तमानमें उपयुक्त जीव आगम भावकाल है। द्रव्यकालसे जनित परिणाम या परिणमन नोआगमभावकाल कहा जाता है।
१ मूलाचा. ३९९.
२ तत्वा . सू. ५, २२,
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