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________________ २९४ छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [ १, ४, १५०. वेउब्बियपरिणदेहि तिलेस्सियसम्मामिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीहि तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, ( तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, ) अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो। कुदो ? पहाणीकयतिरिक्खरासित्तादो । मारणंतिय-उववादपरिणदेहि किण्ह-णीललेस्सियअसंजदसम्मादिट्ठीहि चदुण्डं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेजगुणो, छट्ट-पंचमपुढवीहितो माणुसेसु आगच्छमाणअसंजदसम्मादिट्ठीणं पणदालीसजायणलक्खविक्खंभपंच-चत्तारिरज्जुआयदखेचवलंभादो । मारणंतिय-उववादपरिणदकाउलेस्सियअसंजदसम्मादिट्टीहिं तिण्डं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेजदिभागो, अड्डाइजादो असंखेजगुणो, काउलेस्साए सह असंखेजेसु दीवेसु पढमपुढवीए च उप्पज्जमाणखइयसम्मादिहिछुत्तखेत्तरगहणादो। ___ तेउलेस्सिएसु मिच्छादिट्ठि-सासणसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं पोसिदं, लोगस्स असंखेज्जदिभागों ॥ १५० ।। एदस्स परूवणा खेत्तभंगा, अल्लीणवदृमाणत्तादो । सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, (तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग,) और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है, क्योंकि, यहांपर तिर्यंच राशिकी प्रधानता है। मारणान्तिकसमुद्धात और उपपाद. पदपरिणत कृष्ण और नीललेश्यावाले असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंने सामान्यलोक आदि चार लोकोंका असंख्यातवां भाग और अढ़ाईद्वीपले असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है, क्योंकि, छठी और पांचवीं पृथिवीसे मनुष्यों में आनेवाले क्रमशः कृष्ण और नील लेश्याके धारक असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंके पैंतालीस लाख योजनप्रमाण विष्कम्भवाला, छठी पृथिवीकी अपेक्षा पांच राजु और पांचवीं पृथिवीकी अपेक्षा चार राजु आयत (लम्बा) स्पर्शनक्षेत्र पाया जाता है। मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादपदपरिणत कापोतलेश्यावाले असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। इसका कारण यह है कि यहांपर कापोतलेश्याके साथ असंख्यात द्वीपोंमें और प्रथम पृथिवीमें उत्पन्न होने वाले क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंसे स्पर्शित क्षेत्रका ग्रहण किया गया है। तेजोलेश्यावालोंमें मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ १५०॥ वर्तमानकालको ग्रहण करनेसे इस सूत्रकी प्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान है। १ म प्रतीणील-काउ' इति पाठः। तेजोलेश्यैर्मिध्यादृष्टिसासाचनसम्यग्दृष्टिभिलोकस्यासंख्येयभागः अष्टौ नव चतुर्दशभागा वा देशोना। स. सि. १, ८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.on www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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