________________
२६६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ४, ९०. - वेउव्वियकायजोगीसु मिच्छादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं पोसिदं, लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ९० ॥
एवं सुत्तं जेण वट्टमाणकाले पडिबद्धं तेणेदस्त वक्खाणे कीरमाणे जधा खेत्ताणिओगद्दारे वेउव्वियकायजोगिमिच्छाइटिप्पहुडि-बद्धसुत्तस्स वक्खाणं कदं, तधा एत्थ वि कायव्वं ।
अट्ठ तेरह चोदसभागा वा देसूणा ।। ९१ ॥ ___ सत्थाणसत्थाणपरिणद-वेउव्वियमिच्छादिट्ठीहि तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । विहारवदिसत्थाणवेदण-कसाय-वेउवियपरिणदेहि अट्ट चोद्दसभागा फोसिदा । उववादो णत्थि । मारणतिय. परिणदेहि तेरह चोदसभागा फोसिदा, हेट्ठा छ, उवरि सत्त रज्जू । घणलोगमेगरूवस्स अट्ठतेरसभागूण-सत्तावीसरूवेहि खंडिदएगखंडं फोसति त्ति वुत्तं होइ ।
. वैक्रियिककाययोगियोंमें मिथ्यादृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥९० ॥
. चूंकि यह सूत्र वर्तमानकालसे सम्बद्ध है, इसलिए इसका व्याख्यान करने पर जिस प्रकारसे क्षेत्रानुयोगद्वारमें वैक्रियिककाययोगी मिथ्यादृष्टि आदिक जीवोंसे प्रतिबद्ध सूत्रका व्याख्यान किया है, उसी प्रकारसे यहां पर भी करना चाहिए। ... वैक्रियिककाययोगी मिथ्यादृष्टि जीवोंने तीनों कालोंकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह, और कुछ कम तेरह बटे चौदह भाग स्पर्श किये है ॥ ९१ ॥
स्वस्थानस्वस्थानपदपरिणत वैक्रियिककाययोगी मिथ्यादृष्टि जीवोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, और मनुष्यलोकसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय, और वैक्रियिकसमुद्धातपदपरिणत उक्त जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह (2) भाग स्पर्श किये हैं। यहां पर उपपादपद नहीं होता है, (क्योंकि, मिश्रयोग और कार्मणकाययोगके सिवाय अन्य योगोंके साथ उपपादपदका सहानवस्थानलक्षण विरोध है)। मारणान्तिकसमुद्धातपदपरिणत उक्त जीवोंने (कुछ कम) तेरह बटे चौदह (१४) भाग स्पर्श किये हैं, जो कि मेरुतलसे नीचे छह राजु और ऊपर सात राजु जानना चाहिए । घनाकारलोकको एक रूपके आठ बटे तेरह (ई) भागसे कम सत्ताइस (२६५) रूपोंसे खंडित (विभक्त) करने पर एक खंड प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श करते हैं, ऐसा अर्थ कहा गया समझना चाहिए। . .
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org