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________________ २५६ छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ४, ७६. वेदण-कसाय-वेउव्वियपरिणदेहि अट्ठ चोद्दसभागा देसूणा पोसिदा । घणलोगमट्ठभागूणतेदालीसरूवेहि छिण्णेगभागो, अधोलोगं साद्धचउव्वीसरूवेहि छिण्णेगभागो, उड्डलोगमट्ठभागूणसाट्ठारस रूवेहि छिण्णेगभागो, णर-तिरियलोगेहितो असंखेज्जगुणो पोसिदो त्ति जं उत्तं होदि । मारणंतियपदेण सबलोगो पोसिदो । सासणसम्मादिटिप्पहुडि जाव संजदासंजदा ओघं ॥ ७६ ॥ वट्टमाणकालमस्सिदूण जधा खेत्ताणिओगद्दारस्स ओघम्हि एदेसिं चदुण्डं गुणट्ठाणाणं खेत्तपरूवणा कदा, तधा एत्थ वि सिस्ससंभालणटुं परूवणा कादव्या; णत्थि कोइ विसेसो । अदीदकालमस्सिदूण जधा पोसणाणिओगद्दारस्स ओघम्हि तीदाणागदकालेसु वत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैफ्रियिकपदपरिणत उक्त जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह ( ४ ) भाग स्पर्श किये हैं, जो कि घनाकार लोकको आठवें भागसे कम तेतालीस (४२४) रूपोंसे विभक्त करने पर एक भाग, अथवा अधोलोकको साढ़े चौवीस (२४३) रूपोसे विभक्त करने पर एक भाग, अथवा ऊर्ध्वलोकको आठवें भागसे कम साढ़े अठारह (१८१) रूपोंसे विभक्त करने पर एक भाग प्रमाण होता है। अर्थात् उक्त तीनों ही पद्धतियोंसे क्षेत्र निकालने पर वही देशोन आठ राजु प्रमाण आ जाता है।। उदाहरण-(१) घनलोक-३४३ : ३४३ = ८ राजु. (२) अधोलोक- १९६६ ४९ = ८ राजु. (३) ऊर्ध्वलोक-१४७ १४७ = ८ राजु. इसप्रकार सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका संख्यातवां भाग और नरलोक तथा तिर्यग्लोकसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। मारणान्तिकपदपरिणत जीवोंने सर्वलोक स्पर्श किया है। सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर संयतासंयत गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवती पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान ___ वर्तमानकालका आश्रय करके जैसी क्षेत्रानुयोगद्वारके ओघमें इन चारों गुणस्थानोंकी क्षेत्रप्ररूपणा की गई है, उसी प्रकारसे यहां पर भी शिष्योंके संभालनेके लिए स्पर्शनप्ररूपणा करना चाहिए । इसके अतिरिक्त अन्य कोई विशेषता नहीं है। अतीतकालका आश्रय करके जैसी स्पर्शनानुयोगद्वारके ओघमें अतीत और अनागत कालों की अपेक्षा इन चार गुणस्थान १सासादनसम्यग्दृष्टयादीनां क्षणिकषायान्तानां सामान्योक्तं स्पर्शनम् । स. सि. १,८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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