SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 364
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १, ४. १८.] फोसणाणुगमे थावरकाइयफोसणपरूवणं [ २५१ अदिभागो, तिरियलोगादो संखेजगुणो, माणुसखेत्तादो असंखेज्जगुणो पोसिदो। मारणंतियउववादपरिणदेहि सबलोगो पोसिदो । बादरवणप्फइकाइयपत्तेयसरीरपजत्तएहि य सत्थाणवेदण-कसायपरिणदेहि तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेजदिभागो। किं कारणं ? सव्वपुढवीसु बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरपज्जत्ता णत्थि, 'चित्ताए उवरिमभागे चेव अत्थि' त्ति आइरियवयणादो । अधवा, पत्तेयसरीरपज्जत्ता तिरियलोगादो संखेज्जगुणं खेत्तं पुसंति । कुदो ? बादरणिगोदपदिद्विदपज्जत्ताणं तिरियलोगादो संखेज्जगुणपोसणखेत्तभुवगमादो। ण च पत्तेयसरीरपज्जत्तवदिरित्तबादरणिगोदपदिट्टिदपज्जत्ता अस्थि । बादरणिगोदपदिविदा सव्वे पत्तेयसरीरा चेवेत्ति कधं णयदे ? __ बीजे जोणीभूदे जीवो वक्कमइ सो व अण्णो वा । जे वि य मूलादीया ते पत्तेया पढमदाए॥१६॥ इदि सुत्तवयणादो णव्यदे। पर्याप्त जीवोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकों का असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकसे संख्यातगुणा और मानुषक्षेत्रसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादपदपरिणत जीवोंने सर्व लोक स्पर्श किया है। स्वस्थानस्वस्थान, वेदना और कषाय मुद्धातपदपरिणत बादर वनस्पतिकायिकप्रत्येकशरीर पर्याप्त जीवोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग और तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग स्पर्श किया है। शंका-बादर वनस्पतिकायिकप्रत्येकशरीर पर्याप्त जीवोंके तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागमात्र स्पर्शनक्षेत्र होनेका क्या कारण है ? समाधान-सर्व पृथिवियों में बादरवनस्पतिकायिकप्रत्येकशरीर पर्याप्त जीव नहीं होते हैं, क्योंकि, 'चित्रापृथिवीके उपरिम भागमें ही बादरवनस्पतिकायिकप्रत्येकशरीर पर्याप्त जीव होते है' इस प्रकार आचार्योका वचन है। अथवाप्रत्येकशरीर पर्याप्त जीव तिर्यग्लोकसे संख्यातगुणे क्षेत्रको स्पर्श करते हैं, क्योंकि, बादरनिगोदप्रतिष्ठित पर्याप्त जीवोंका तिर्यग्लोकसे संख्यातगुणा स्पर्शनक्षेत्र स्वीकार किया गया है। तथा प्रत्येकशरीर पर्याप्त जीवोंको छोड़कर वादरनिगोदप्रतिष्ठित पर्याप्त नामके कोई अन्य जीव नहीं होते हैं। इसलिए उनका स्पर्शनक्षेत्र तिर्यग्लोकसे संख्यातगुणा बन जाता है। शंका-बादरनिगोदप्रतिष्ठित जीव सभी प्रत्येक शरीरी ही होते हैं, यह कैसे जाना ? समाधान-'योनीभूत बीजमें वही पूर्व पर्यायवाला जीव अथवा अन्य दूसरा भी जीव चंक्रमण करता है। और जो बीज मूलादिक बादानिगोदप्रतिष्ठित वनस्पतिकायिक भी वे सब प्रथम अवस्थामें प्रत्येकशरीर ही होते हैं॥१६॥ - इस सूत्रवचनसे जाना जाता है कि बादरनिगोदप्रतिष्ठित जीव सभी प्रत्येक शरीरी ही होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy