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१, ४, ४७.]
फोसणागमे देवकोसणपरूवणं
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संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो । तं जहा - एगं जगपदरं ठविय तप्पा ओग्गसंखेज्जपद रंगुलेहि भागे हिदे वेंतरावासाण पमाणं होदि । तमेगावासो गाहणाए संखेज्जघणंगुलपणाए गुणिदे संखेअंगुलाणि बाहलं तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागमेत्तं जगपदरं होदि। असंखेज्जजोयणवित्थडा चैतरावासा अप्पधाणा चिकट्टु इदं भणिदं । अह जह ते चेय पहाणा, जगपदरस्स असंखेज्जाणि पदरंगुलाणि भागहारं ठविय असंखेज्जघणंगुलेहि गावापणेहि गुणिदे तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो होदि । विहारवदिसत्थाणवेद- कसाय- उब्वियपद परिणदमिच्छादिड्डि-सासणसम्मादिट्ठीहि सगपच्चएण आहुडचोदभागा देखणा पोसिदा । परपच्चएण अट्ठ चोदसभागा देणा पोसिदा । मारणंतियसमुग्धादगदेहि णव चोदसभागा पोसिदा । उववादेण तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो पोसिदो । उववादेण तिरियलोगादो असंखेज्जगुणं खेतं वट्टमाणकाले अवरुंभिय द्विदवेंतरा अदीदकाले कधं तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागं पुति त्ति उत्ते ण एस दोसो, खेतं णाम सन्चजीवाण
ग्लोकका संख्यातवां भाग और अढाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है । वह इस प्रकार है- एक जगप्रतरको स्थापित करके तत्प्रायोग्य संख्यात प्रतरांगुलोंसे भाग देने पर संख्यात घनांगुलप्रमाण व्यन्तर देवोंके आवासोंका प्रमाण हो जाता है। उसे संख्यात अंगुलप्रमाण एक आवासकी अवगाहना से गुणा करनेपर संख्यात घनांतुल बाहल्यवाला और तिर्यग्लोकके संख्यातवें भाग प्रमाण जगप्रतर होता है । यद्यपि असंख्यात योजन विस्तारवाले भी व्यन्तरोंके आवास होते हैं, किन्तु वे यहांपर प्रधानरूपसे विवश्चित नहीं हैं, इस अपेक्षासे यह उक्त स्पर्शनक्षेत्र कहा है । और यदि वे ही अर्थात् असंख्यात योजन विस्तार वाले विमानोंको ही प्रधान माना जाय, तो जगप्रतरका असंख्यात प्रतरांगुलप्रमाण भागहार स्थापित करके एक आवासके क्षेत्रफलको अपेक्षा उत्पन्न होने वाले असंख्यात घनांगुलों से गुणा करने पर तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग हो जाता है ।
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विद्दारवत्स्वस्थान, वेदना, कपाय और वैक्रियिकपदपरिणत मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि भवनवासी देवोंने स्वप्रत्ययसे अर्थात् अपने आप कुछ कम साढ़े तीन बटे चौदह ( ) भाग स्पर्श किये हैं । किन्तु परप्रत्ययसे अर्थात् अन्य देवोंके प्रयोगले कुछ कम आठ वटे चौदह (१४) भाग स्पर्श किये हैं । मारणान्तिकसमुद्घातगत उक्त दोनों गुणस्थानवर्ती व्यन्तर देवोंने नौ बटे चौदह ( २ ) भाग स्पर्श किये हैं । उपपादकी अपेक्षा उक्त जीवोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और अढाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है ।
शंका-उपपादकी अपेक्षा तिर्यग्लोकसे असंख्यातगुणा क्षेत्र वर्तमानकाल में व्याप्त करके स्थित व्यन्तर देव अतीतकाल में कैसे तिर्यग्लोक के संख्यातवें भागको स्पर्श करते हैं ?
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