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१, ४, ४३. ]
फोसणा गमे देवकोसण परूवणं
[ २२५
उववादगदाणं पि खेतोघमेव होदि । एसा वट्टमाणपमाणपरूवणा । अदीदाणागदपरूवणमाह
अट्ठ व चोदसभागा वा देसूणा ॥ ४३ ॥
सत्थाणसत्थाणमिच्छादिट्ठीहि तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो पोसिदो । एत्थ ओघकारणं वत्तव्यं । सासणसम्मादिट्ठीहि सत्थाणसत्थाणपरिणदेहि तिन्हं लोगाणमसंखेजदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जंदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो पोसिदों । एत्थ वि ओघकारणं वत्तन्त्रं । विहारवदिसत्थाण- वेदण-कसाय-वेउच्त्रियपरिणदेहि दोगुणट्ठाणजीवेहि अदीदकाले अड्ड चोहसभागा देणा पोसिदा । केण ऊणा ? तदिय पुढ विहेट्ठिमतलसह स्सजोयणेहि अण्णेहि वि देवाणमगम्मपदेसेहि । मारणंतिय समुग्धादगदेहि मिच्छादिहि- सासणसम्मादिट्ठीहि णव चोहसमागा देसूणा पोसिदा, हेड्डा दो रज्जू, उवरि सत्त रज्जु ति । उववादगदेहि
समुद्धात और उपपादपदवाले जीवों का भी स्पर्शनक्षेत्र ओघ क्षेत्रप्ररूपणा के समान ही होता है । इसप्रकार यह वर्तमानकालिक स्पर्शनक्षेत्र के प्रमाणकी प्ररूपणा समाप्त हुई । अब अतीत और अनागत कालसम्बन्धी स्पर्शनक्षेत्र के प्ररूपण करनेके लिए आगेका सूत्र कहते है
मिध्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि देवोंने अतीत और अनागतकालकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग और कुछ कम नौ बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥ ४३ ॥
स्वस्थानस्वस्थान पदवाले मिथ्यादृष्टि देवोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और अढाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है | यहांपर कारण ओघके समान कहना चाहिए । स्वस्थानस्वस्थानपदपरिणत सासादन सम्यग्दृष्टि देवोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और अढ़ाई द्वीपले असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है । यहांपर भी कारण ओघके समान ही कहना चाहिए । विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिकसमुद्धात, इन पदों परिणत मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि, इन दो गुणस्थानत देवोंने अतीतकाल में कुछ कम आठ बटे चौदह (४) भाग स्पर्श किये हैं ।
शंका- यहां आठ बढे चौदह भाग किस क्षेत्र से कम हैं ?
समाधान-तृतीय पृथिवी के अधस्तन तलसम्बन्धी एक हजार योजनोंसे, तथा अन्य भी देवोंके अगम्य प्रदेशोंसे, कम हैं ।
मारणान्तिकसमुद्धातगत मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि देवोंने मंदराचलसे नीचे दो राजु और ऊपर सात राजु, इस प्रकार कुछ कम नौ बढे चौदह (१४) भाग स्पर्श
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