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१, ४, ३७ ] फोसणाणुगमे मणुस्सफोसणपरूवणं __ . [ २१७ मिच्छादिट्ठीणं आगासगमणादिविसत्तिविरहिदाणं जोयणलक्षवाहल्लेण फासाभावादो.। अधवा सव्वपदेहि माणुसलोगो देसूणो पोसिदो, पुव्ववेरियदेवसंबंधेण उड्डूं देसूणजोयणलक्खुप्पायणसंभवादो । एसो 'वा' सद्दट्ठो। मारणंतिय-उववादगदेहि सव्वलोगो पोसिदो, सबलोगे गमणागमणे विरोहाभावादो। ___सासणसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं पोसिदं,लोगस्स असंखेज्जदिभागों ॥३६॥
एदस्स सुत्तस्स अत्थो पुव्वं परूविदो।। सत्त चोदसभागा वा देसूणा ॥ ३७ ॥
सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण वेदण-कसाय-उब्बियसमुग्घादगदेहि सासणसम्मादिट्ठीहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो पोसिदो। माणुसखेत्तस्स संखेज्जदिभागो पोसिदो । अधवा विहारादि-उवरिमपदेहि माणुसखेत्तं देसूर्ण पोसिदं । केण ऊणं ? चित्त
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संख्यातवां भाग स्पर्श किया है, क्योंकि, आकाशगमनादि विशिष्ट शक्तिसे विरहित मिथ्यादृष्टि जीवोंके एक लाख योजनके बाहल्यसे सर्वत्र स्पर्शका अभाव है। अथवा, सर्व पदोंकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टि मनुष्योंने देशोन मनुष्यलोकका स्पर्श किया है, क्योंकि, पूर्वभवके वैरी देवोंके सम्बन्धसे ऊपर कुछ कम एक लाख योजन तक उनका जाना आना संभव है। इस प्रकार यह 'वा' शब्दका अर्थ समाप्त हुआ।
मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादपदगत उक्त तीनों प्रकारके मनुष्य मिथ्याष्टि जीवोंने सर्वलोक स्पर्श किया है, क्योंकि, इन दोनों पदोंकी अपेक्षा सर्वलोकके भीतर जाने आने में कोई विरोध नहीं है।
मनुष्य, मनुष्यपर्याप्त और मनुष्पनी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ।। ३६ ॥
इस सूत्रका अर्थ पहले कहा जा चुका है।
मनुष्य, मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंने अतीत और अनागतकालकी अपेक्षा कुछ कम सात बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥ ३७॥
स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिकसमुद्धातगत सासा' दनसम्यग्दृष्टि मनुष्योंने सामान्यलोक आदि चार लोकों का असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है, तथा मानुषक्षेत्रका संख्यातवां भाग स्पर्श किया है। अथवा, विहारवत्स्वस्थानादि ऊपरके पदोंकी अपेक्षा देशोन मनुष्यक्षेत्रको स्पर्श किया है।
शंका-यहां देशोन पदसे कितना कम क्षेत्र विवक्षित है ? १ सासादनसम्यग्दृष्टिमिलोकस्यासंख्येयभागः सप्त चतुर्दशमागा वा देशोनाः । स. सि. १, ८.
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