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१, ४, ३०. ]
फौसणाणुगमे तिरिक्खफोसण परूवणं
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जादो असंखेज्जगुणो अदीदकाले फोसिदो । कुदो ? संजदासंजदाणं वेरियदेवसंबंधेण जोयणलक्खबाल्लं तिरियपदरस्स अदीदकाले पोसो अस्थि ति । मारणंतियसमुग्धादगदेहि संजदासंजदेहि छ चोदसभागा देसूणा फोसिदा, तिरिक्ख संजदासंजदाणमच्चदकप्पो चि मारणंतिएण गमणसंभवादो ।
पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्त जोणिणीसु मिच्छादिहीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं, लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ २९ ॥ एदं सुतं वट्टमाणकाल संबंधि त्ति एदस्स परूवणाए खेत्त भंगो । सव्वलोगो वा ॥ ३० ॥
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परिसेसादो एदं सुतं तीदाणागदकालसंबंधी । एत्थ ताव वा ' सद्दट्ठो उच्चदेति-विसेसणविसिसत्थाणतिरिक्खमिच्छादिट्ठीहि तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो पोसिदो । एदं खेत्तमाणिज्जमा असंखेज्जे समुद्देसु भोगभूमिपडि भागदीवाण मंतरेषु द्विदेसु सत्थाणपदद्विदतिविहा तिरिक्खा
संख्यातवां भाग और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र अतीतकाल में स्पर्श किया है, क्योंकि, संयतासंयत तिर्यचोंका वैरी देवोंके हरणसम्बन्धसे एक लाख योजन बाहल्यवाले तिर्यक्प्रतरका अतीतकाल में स्पर्श किया गया है। मारणान्तिकसमुद्धातगत तिर्यच संयतासंयतोंने कुछ कम छह बटे चौदह ( ) भाग स्पर्श किये हैं, क्योंकि, तिर्यच संयतासंयतों का अच्युतकल्प तक मारणान्तिकसमुद्धात से गमन संभव है ।
पंचेन्द्रियतिर्यच, पंचेन्द्रियतिर्यंच पर्याप्त और पंचेन्द्रियतियंच योनिमतियों में मिध्यादृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ।। २९ ।।
यह सूत्र वर्तमानकालसम्बन्धी है, इसलिए इसकी स्पर्शनप्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणा के समान जानना चाहिए ।
उक्त तीनों प्रकारके सियंच जीवोंने अतीत और अनागत कालमें सर्वलोक स्पर्श किया है ।। ३० ।।
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पारिशेषन्याय से यह सूत्र भूत और भविष्यकालसम्बन्धी है। यहांपर पहले 'वा'' शब्दका अर्थ कहते है-पंचेन्द्रियतिर्यच, पंचेद्रियतिर्यचपर्याप्त और योनिमती इन तीन विशे. क्षणों से विशिष्ट स्वस्थानपदस्थित तिर्येच मिथ्यादृष्टि जीवोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातषां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। इस क्षेत्रको निकालने पर असंख्यात समुद्रों में और भोगभूमिके प्रतिभागरूप द्वीपोंके अन्तरालों में स्थित क्षेत्रों में स्वस्थानपद स्थित उक्त तीन प्रकारके तिर्यच नहीं हैं, इसलिए इस
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