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________________ १, ३, २८.] खेताणुगमे तसकाइयखेत्तपरूवणं [१०१ एवं कधं णव्वदे ? गुरूवएसादो । तसकाइय-तसकाइयपज्जत्तएसु मिच्छाइट्टिप्पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति केवडि खेत्ते, लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥ २६ ॥ तसकाइय-तसकाइयपज्जत्तमिच्छाइट्टी सत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय-वेउबियसमुग्धादगदा तिण्डं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, अड्वाइजादो असंखेज्जगुणे । मारणंतिय-उववादगदा तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, णर-तिरियलोगेहितो असंखेजगुणे । एत्थ ओवट्टणा जाणिय कायव्या। सेसगुणट्ठाणाणं पंचिंदियभंगो। सजोगिकेवली ओघं ॥ २७॥ . सुगममेदं । तसकाइयअपज्जत्ता पंचिंदियअपज्जत्ताणं भंगो ॥ २८ ॥ शंका-यह कैसे जाना जाता है ? समाधान-गुरुके उपदेशसे जाना जाता है कि बादर वनस्पतिकायिक जीव पृथिवियोंके ही आश्रयसे रहते हैं। त्रसकायिक और त्रसकायिक पर्याप्त जीवोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ २६ ॥ ___ स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्धात, कषाय समुद्धात और वैक्रि मुद्धातगत त्रसकायिक और त्रसकायिक पर्याप्त मिथ्यादृष्टि जीव सामान्यलोक आदि तीन लोकोंके असंख्यातवें भागमें, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागमें और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं। मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादगत प्रसकायिक और सकायिक पर्याप्त मिथ्यादृष्टि जीव तीनों लोकोंके असंख्यातवें भागमें तथा मनुष्यलोक और तिर्यग्लोकसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं। यहांपर अपवर्तना जानकरके करना चाहिये। सासादनादि शेष गुणस्थानवर्ती त्रसकायिक और त्रसकायिक पर्याप्त जीवोंका क्षेत्र पंचेन्द्रिय जीवोंके क्षेत्रोंके समान जानना चाहिए। सयोगिकेवलीका क्षेत्र ओघनिरूपित सयोगिकेवलोके क्षेत्रके समान है ॥ २७॥ यह सूत्र सुगम है। त्रसकायिक लब्ध्यपर्याप्त जीवोंका क्षेत्र पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकोंके क्षेत्रके समान है ॥ २८॥ १ सकायिकानां पञ्चेन्द्रियवत् । स. सि. १, . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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