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________________ [ ८९ १, ३, २२.] खेत्ताणुगमे पुढविकाइयादिखेत्तपरूवणं विदियपुढवी सत्तमभागूण-वे-रज्जुविक्खंभा सत्तरज्जुआयदा बत्तीसजोयणसहस्सबाहल्ला सोलहसहस्साहियचदुण्हं लक्खाणं एगुणवंचासभागवाहल्लं जगपदरं होदि । तदियपुढवी वे-सत्तभागहीण-तिण्णिरज्जुविक्खंभा सत्तरज्जुआयदा अट्ठावीसजोयणसहस्सवाहल्ला बत्तीससहस्साहियं पंचलक्खजोयणाणं एगूणवंचासभागवाहल्लं जगपदरं होदि । चउत्थपुढवी तिण्णि-सत्तभागूण-चत्तारिरज्जुविक्खंभा सत्तरज्जुआयदा चउवीसजोयणसहस्सबाहल्ला छजोयणलक्खाणमेगूणवंचासभागवाहल्लं जगपदरं होदि । पंचमपुढवी उदाहरण-पहली पृथिवी उत्तरसे दक्षिणतक सात राजु, पूर्वसे पश्चिमतक एक राजु और एक लाख अस्सी हजार योजन मोटी है, अतएव १८०००० योजनोंके प्रमाणमें ७ का भाग देनेसे २५७१४३ योजन लब्ध आते हैं और एक राजुके स्थानमें जगश्रेणीका प्रमाण हो जाता है । इसप्रकार २५७१४६ योजनोंके जितने प्रदेश हो उतने जगप्रतरप्रमाण पहली पृथिवीका घनफल होता है। । दूसरी पृथिवी एक राजुके सात भागोंमेंसे एक भाग कम दो राजु चौड़ी, सात राजु लम्बी और बत्तीस हजार योजन मोटी है । यह घनफलकी अपेक्षा चार लाख सोलह हजार योजनोंके उनचासवें भाग बाहल्यरूप जगप्रतरप्रमाण है। उदाहरण-दूसरी पृथिवी उत्तरसे दक्षिणतक सात राजु; पूर्व से पश्चिमतक १७ राजु और ३२००० योजन मोटी; योजन बाहल्यरूप जगप्रतरप्रमाण. तीसरी पृथिवी एक राजुके सात भागों से दो भाग कम तीन राजु चौड़ी, सात राजु लम्बी और अट्ठाईस हजार योजन मोटी है । यह घनफलकी अपेक्षा पांच लाख बत्तीस हजार योजनोंके उनंचासवें भाग बाहल्यरूप जगप्रतरप्रमाण है। उदाहरण- तीसरी पृथिवी उत्तरसे दक्षिणतक ७ राजु लम्बी, पूर्व से पश्चिमतक. राजु चौड़ी; और २८००० योजन मोटी है। .७ _ १९. १९, २८००० -५३२०००, ५३२००० : ४९ = ५३२ योजन बाहल्यरूप जगप्रतर. चौथी पृथिवी एक राजुके सात भागोंमेंसे तीन भाग कम चार राजु चौड़ी, सात राजु लम्बी और चौवीस हजार योजन मोटी है। यह घनफलकी अपेक्षा छह लाख योजनोंके उनचासवें भाग बाहल्यरूप जगप्रतरप्रमाण है। उदाहरण-चौथी पृथिवी उत्तरसे दक्षिणतक सात राजु, पूर्व से पश्चिमतक २५ राजु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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