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१, ३, २२. ]
खेत्तागमे पुढ विकाइयादिखेत्तपरूवणं
एदस्स सुत्तस्स अत्थो पुण्यं परुविदो त्ति ण वुच्चदे | पंचिंदियअपज्जत्ता केवडि खेत्ते, लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥ २१ ॥ सत्थाण- वेदण-कसायसमुग्धादगदपंचिदियअपजत्ता चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे अड्डाइज्जादो असंखे जगुणे । कुदो ? अंगुलस्स असंखेजदिभागमेत्त - ओगाहणादो। मारणंतियउववादगदा तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, णर- तिरियलोगे हिंतो असंखेज्जगुणे । एवमिंदियमग्गणा गदा ।
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कायावादेण पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया, बादरपुढविकाइया बादरआउकाइया बादरतेउकाइया बादरवाङकाइया बादरवणफदिकाइयपत्ते यसरीरा तस्सेव अपज्जत्ता, सुहुमपुढविकाइया सुहुम आउकाइया सुहुमते उकाइया सुहुमवाउकाइया तस्सेव पज्जत्ता अपज्जत्ता य केवाड खेत्ते, सव्वलोगे ॥ २२ ॥
इस सूत्र के अर्थकी प्ररूपणा पहले कर आये हैं, इसलिये यहां पर पुनः उसका कथन नहीं करते हैं ।
लब्ध्यपर्याप्त पंचेन्द्रिय जीव कितने क्षेत्र में रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र में रहते हैं ॥ २१ ॥
स्वस्थानस्वस्थान, वेदनासमुद्धात और कषायसमुद्घातको प्राप्त हुए लब्ध्यपर्याप्त पंचेन्द्रिय जीव सामान्यलोक आदि चार लोकोंके असंख्यातवें भ.गप्रमाण क्षेत्रमें और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं, क्योंकि, लब्ध्यपर्याप्त पंचेन्द्रियोंकी अवगाहना अंगुलके असंख्यातवें भागमात्र है । मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादको प्राप्त हुए लब्ध्यपर्याप्त पंचेन्द्रिय जीव सामान्यलोक आदि तीन लोकोंके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र में तथा मनुष्यलोक और तिर्यग्लोकसे असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं ।
इस प्रकार इन्द्रियमार्गणा समाप्त हुई ।
काय मार्गणाके अनुवाद से पृथिवीकायिक, अष्कायिक, तैजस्कायिक वायुकायिक जीव तथा बादर पृथिवीकायिक, बादर अष्कायिक, बादर तैजस्कायिक, बादर वायुकायिक और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीव तथा इन्हीं पांच बादर कायसम्बन्धी अपर्याप्त जीव, सूक्ष्म पृथिवीकायिक, सूक्ष्म अष्कायिक, सूक्ष्म तैजस्कायिक, सूक्ष्म वायुकायिक और इन्हीं सूक्ष्मोंके पर्याप्त और अपर्याप्त जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? सर्व लोक में रहते हैं ॥ २२ ॥
१ कायानुवादेन पृथिवी का या दिवनस्पतिका यि कान्तानां सर्वलोकः । स. सि. १, ८,
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