SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५.] छक्खंडागमे जीवाणं [१, ३, ५. तदियपुढविणवमपत्थडम्हि णेरइयाणमुस्सेधो एकत्तीस धणूणि एगो हत्थो य। सेसहपत्थडणेरइयाणमुस्सेधो पुविल्लगाहाए आणेदव्यो । णवरि एत्थ एकत्तीस धणूणि सहत्थाणि भूमी होदि । पण्णरस धणूणि वे हत्था वारह अंगुलाणि मुहं होदि । भूमीदो मुहं सोहिय उस्सेधेण णवहि भागे हिदे वड्डी होदि । तं वढेि णवसु ठाणेसु ठविय एगादिएगुचरेहि गुणगारेहि गुणिय मुहम्मि पक्खित्ते इच्छिदउस्सेधो होदि । तस्स पमाणमेद | प्रस्तार १ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ ७ । ८ ९ धनुष | १७ | १९ | २० | २२ | २४ | २६ | २७ / २९ ३१ हस्त | १ ० ३ | २ १ ० ३ २ १ | अंगुल १०३ ९३८६३ | ५३ | ४ | २३ |१३/० चउत्थपुढविसत्तमपत्थडणेरइयाणमुस्सेधो वासट्ठी धणूणि वे हत्था य'। एदं भूमि तीसरी पृथिवीके नौवें पाथड़ेमें नारकियोंका उत्सेध इकतीस धनुष और एक हाथ है।शेष आठ पाथड़ोंके नारकियोंका उत्लेध पूर्व गाथाके नियमानुसार ले आना चाहिये । इतनी विशेषता है कि यहांपर इकतीस धनुष और एक हाथ भूमि है। पन्द्रह धनुष, दो हाथ और बारह अंगुल मुख है। भूमिमेंसे मुखको घटाकर उत्सेध (पद्) नौ का भाग देनेपर वृद्धिका प्रमाण आता है । (तीसरी पृथिवीमें प्रतिपटल वृद्धिका प्रमाण १ धनुष, २ हाथ और २२३ अंगुल है।) इस वृद्धिको नौ स्थानों में स्थापित करके एक आदि एकोत्तर गुणकारोंसे गुणित करके मुखमें मिला देनेपर इच्छित पाथड़ेके नारकियों का उत्सेध आता है। उसका प्रमाण यह है-(देखो मूलका नकशा)। __चौथी पृथिवीके सातवें पाथड़े नारकियोंका उत्सेध वासठ धनुष और दो हाथ है। १ तच्चाएxxउकोसेणं एक्कतीस धणूई एक्का रयणी । जीवामि. ३, २, १२. २ एक्क धणू दो हत्था बावीस अंगुलाणि दो भागा । तियभजिदं णायव्वा मेघाए हाणिवुड़ीओ ॥ सत्तरसं चावाणि चोचीसं अंगुलाणि दो भागा । तियभजिदा मेवाए उदओ तत्तिदयम्मि जीवाणं ॥ एककोणास दंडा अ संगुलाणि तिहिदाणि । तसिदिंदयम्मि तदियक्खोणीए णारयाण उच्छेहो॥ वीसस्स दंडसहियं सीदीए अंगुलाणि होदि तदा । तदियं चिय पुटवीए तवाणिंदयणारयम्मि उच्छेहो ॥णउदिपमाणा हत्था सियविहत्ताणि वीस पव्व तंवर्णिदयठिदाण जीवाण उच्छेहो ॥ सत्ताणउदी हत्था सोलस पव्वाणि तियविहवाणि । उदओ णिदाघणामाए पडले णारया जीवा ॥ छब्बीसं चावाणिं चत्तारी अंगुलाणि मेघाए। पजलिवणामपडले ठिदाण जीवाण उच्छेहो ॥ सत्तावीसं दंडा तिय इत्था अट्ठ अंगुलाणि च । तियभजिदाई उदओ उज्जलिदे णारयाण णादवो॥ एकोणतीस दंडा दो हत्या अंगुलाणि चत्तारि । तियभजिदाई उदओ संजलिदे तदियपुटवीए ॥ इकर्तासं दंडाए एक्को इत्थो अ तदिय. पुरवीए । संपज्जलिदे चरिमिंदयणारयाण होदि उच्छेहो ॥ ति. प. २, २४३-२५२, ३चउत्थीए ४ वासट्ठी धणूई दोपण रयणीओ। जीवाभि. ३, २, १२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy