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________________ कम नं. षटखंडागमकी प्रस्तावना विषय पृ.नं. क्रम नं. विषय पृ.नं. १०४ बादर एकेन्द्रिय जीवोंका नाना जीवकी अपेक्षा जघन्य और और एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट काल ३९३-३९४ जघन्य और उत्कृष्ट काल ३८८-३८९/११२ सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवोंका नाना १०५ 'कर्मस्थितिको आवलीके असं और एक जीवकी अपेक्षा ख्यातवें भागसे गुणा करने जघन्य और उत्कृष्ट काल ३९४ पर बादरस्थिति होती है," |११३ सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक इस परिकर्म-वचनके साथ जीवोंका नाना और एक बतलाये गये बादर एकेन्द्रियों जीवकी अपेक्षा जघन्य और के एक जीवगत उत्कृष्ट कालका उत्कृष्ट कालका तदन्तर्गत शंकाविरोध क्यों नहीं होगा, इस समाधान पूर्वक निरूपण ३९४-३९५ शंकाका समाधान ३९०.११४ जब कि एक सूक्ष्म एकेन्द्रिय १०६ बादर एकेन्द्रिय पर्यातक जीवके आयुकर्मकी स्थिति जीवोंकानाना और एकजीवकी संख्यात आवली प्रमाण होती अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट है, तब संख्यात वार उनमें ही काल पुनः पुनः उत्पन्न होनेवाले १०७ क्षुद्रभवग्रहणका काल संख्यात जीवके दिवस, पक्ष, मास आवलीप्रमाण होता है, इस आदि प्रमाण स्थितिकाल क्यों बातका सप्रमाण निरूपण ३९०-३९४ नहीं पाया जाता, इस शंकाका १०८ अन्तर्मुहूर्त भी संख्यात आवली समाधान प्रमाण होता है, अतः अन्त १२५ सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक मुहूर्त और क्षुद्रभवके कालमें जीवोंका नाना और एक जीवकी कोई भेद नहीं मानना चाहिए, अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट इस शंकाका समाधान कालका तदन्तर्गत अनेकों शंका१०९ बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तक समाधानोंके साथ निरूपण ३९६-३९७ जीवोंकी भवस्थिति असंख्यात ६ सामान्य विकलत्रय और पर्यावर्षप्रमाण क्यों नहीं होती है, तक विकलत्रय जीवोंके एक इस शंकाका समाधान ३९२ और नाना जीवोंकी अपेक्षा ११० यदि कोई जीव बादर एकेन्द्रि जघन्य और उत्कृष्ट कालोंका योंमें उत्कृष्ट संख्यात वार या तत्संबंधी अनेक शंका-समाउसके संख्यातवें भागप्रमाण धानोंके साथ निरूपण ३९७-३९८ वार उत्पन्न हो, तो असंख्यात ११७ लब्ध्यपर्याप्तक विकलत्रय वर्षप्रमाण बादर एकेन्द्रिय जीवोंका नाना और एक पर्याप्तक जीवोंकी उत्कृष्ट भव जीवकी अपेक्षा जघन्य और स्थिति क्यों नहीं हो जायगी, उत्कृष्ट काल, वा तत्सम्बन्धी इस शंकाका समाधान शंका-समाधान ३९८-३९९ १११ बादर एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक ११८ पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रियपर्याप्त जीवोंका नाना और एक मिथ्यावृष्टि जीवोंका नाना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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