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________________ षट्खंडागमकी प्रस्तावना नपुंसक अनन्त ५ वेद मार्गणा (पृ. ४२१) पुरुष अवेद असंख्य असंख्य अनन्त स्त्री सर्व जीव. अनन्त २०० २० ३२ १६ लोभ. अनन्त ૮ ૨ माया. अनन्त ६ कषाय मार्गणा (पृ. ४३१) क्रोध. मान. अकषायी. अनन्त अनन्त अनन्त ४८ ४४ १२.३ सर्व जीव अनन्त १६ विभंग. । केवल. सर्व जीव कुमति. कुश्रुत. अनन्त ८३२ ७ ज्ञान मार्गणा (पृ. ४४२ ) मति. । अवधि. | मनःपर्यय, | श्रुत. असख्य असंख्य संख्यात २० असंख्य अनन्त अनन्त १६ ६४ ८४ ८ संयम मार्गणा (पृ. ४५१) असंयमी | देशसं. | सामाः । यथाख्या. | परि. वि. | सू. सां. | सिद्ध । सर्व जीव छेदो. अनन्त । असंख्य संख्यात संख्यात संख्यात संख्यात अनन्त अनन्त ८३२ +" १२८ १६ ९ दर्शन मार्गणा (पृ. ४५७) अवधि. केवल. असंख्य असंख्य अनन्त अचक्षु. अनन्त ८३२ ६४ चक्षु. सर्व जीव अनन्त १२८ ६४ ६४ २ यहां मिद्धोंका प्रमाण ९वें गुणस्थानके अवेद भागसे ऊपरके समस्त गुणस्थानोंकी राशियोंसे सातिरेक है। ३ यहां सिद्धोंका प्रमाण ११ वें और ऊपरके समस्त गुणस्थानोंकी राशियोंसे सातिरेक है। ४ यहां सिद्धोका प्रमाण १३ वें और १४ वें गुणस्थानोंकी राशियोंसे सातिरेक है। ५ यहाँ मिथ्यादृष्टियोका प्रमाण २ सरे, ३ सरे और ४ थे गुणस्थान की राशियोंसे साधिक है । ६ यहां सिद्धोंका प्रमाण १३ वें और १४ वें गुणस्थानोंकी राशियोंसे सातिरेक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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