SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 579
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८६] छक्खंडागमे जीवहाणं [ १, २, १९२. सव्वत्थोवा चत्तारि उवसामगा । खवगा संखेज्जगुणा । अप्पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । आहारिअसंजदसम्माइटिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । सम्मामिच्छाइट्ठिअवहारकालो असंखेज्जगुणो। आहारिसासणसम्माइटिअवहारकालो संखेज्जगुणो। संजदासंजदअवहारकालो असंखेज्जगुणो । तस्सेव दव्वमसंखेज्जगुणं । एवं णेयव्वं जाव पलिदोवमं ति । तदो आहारिमिच्छाइट्ठिणो अणतगुणा । अणाहारएसु सव्वत्थोवा सजोगिकेवली। असंजदसम्माइडिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । सासणसम्माइट्ठिअवहारकालो असंखेज्जगुणो। तस्सेव दव्वमसंखेज्जगुणं । एवं णेयव्वं जाव पलिदोवमं ति । तदो अबंधगा अणंतगुणा । बंधगा अणंतगुणा । सव्यपरत्थाणे पयदं । सव्वत्थोवा अणाहारिसजोगिकेवली । (अजोगिकेवली संखेजगुणा।) चत्तारि उवसामगा संखेजगुणा । (खवगा संखेजगुणा।) आहारिसजोगिकेवली संखेजगुणा । अप्पमत्तसंजदा संखेजगुणा । पमत्तसंजदा संखजगुणा। आहारिअसंजदसम्माइडिअव ........... __ अब परस्थानमें अल्पबहुत्व प्रकृत है-चारों गुणस्थानवर्ती उपशामक जीव सबसे स्तोक हैं। क्षपक जीव उपशामकोंसे संख्यातगुणे हैं। अप्रमत्तसंयत जीव क्षपकोंसे संख्यातगुणे हैं। प्रमत्तसंयत जीव अप्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं। आहारक असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल प्रमत्तसंयतोंसे असंख्यातगुणा है । सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल आहारक असंयतसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालसे असंख्यातगुणा है । आहारक सासादनसम्यदृष्टियोंका अवहारकाल आहारक सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंके अवहारकालसे संख्यातगुणा है । संयतासंयतोंका अवहारकाल आहारक सासादनसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालसे असंख्यातगुणा है। उन्हींका द्रव्य उन्हींके अवहारकालसे असंख्यातगुणा है । इसीप्रकार पल्योपमतक ले जाना चाहिये । पल्योपमसे आहारक मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तगुणे हैं। अनाहारकों में सयोगिकेवली जीव सबसे स्तोक हैं। अनाहारक असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल अनाहारक सयोगिकेवलियोंसे असंख्यातगुणा है । अनाहारक सासादनसम्यग्दृष्टियोंका भवहारकाल अनाहारक असंयतसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालसे असंख्यातगुणा है। उन्हींका द्रव्य उन्हींके अघहारकालसे असंख्यातगुणा है । इसीप्रकार पत्योपमतक ले जाना चाहिये । पल्योपमसे अबन्धक जीव अनन्तगुणे हैं । बन्धक जीव अबन्धकोंसे अनन्तगुणे हैं। अब सर्व परस्थानमें अल्पबहुत्य प्रकृत है- अनाहारक सयोगिकेवली जीव सबसे स्तोक हैं । अयोगिकेवली जीव उनसे संख्यातगुणे हैं । चार गुणस्थानवर्ती उपशामक जीव अयोगिकेवलियोंसे संख्यातगुणे हैं । क्षपक जीव उपशामकोंसे संख्यातगुणे हैं। आहारक सयोगिकेवली जीव क्षपकोंसे संख्यातगुणे हैं। अप्रमत्तसंयत जीव आहारक सयोगिकेवलियोंसे संख्यातगुणे हैं । प्रमत्तसंयत जीव भप्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं । आहारक असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल प्रमत्तसंयतोंसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy