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१६.] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, २, १६२. __ अणंतत्तणेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागतेण च ओघेण साधम्ममत्थि ति ओघमिदि भणिदं । विसेसे अवलंबिज्जमाणे पुण णत्थि समाणत्तं, सेसलेस्सोवलक्खियजीवाणं पयदगुणहाणेसु असंभवादो। एत्थ धुवरासी वुच्चदे । तं जहा-सिद्ध-तेरसगुणपडिवण्ण-तेउ-पम्म-सुक्कलेस्समिच्छाइट्ठिरासिं किण्ह-णील-काउलेस्समिच्छाइट्ठिरासिभजिदमेदेसि वग्गं च सव्वजीवरासिस्सुवरि पक्खिते हि किण्ह-णील-काउलेस्समिच्छाइद्विधुवरासी होदि । तं तीहि रूवेहि गुणेऊण आवलियाए असंखेज्जदिभागेण भागे हिदे लद्धं तम्हि चेव पक्खित्ते काउलेस्सियधुवरासी होदि । पुयभागहारमब्भहियं काऊण तिगुणधुवरासिम्हि भागे हिदे लद्धं तम्हि चेव पक्खित्ते णीललेस्सियधुवरासी होदि । तमावलियाए असंखेज्जदिभाएण भागे हिदे लद्धं तम्हि चेव अवणिदे किण्हलेस्सियधुवरासी होदि । काउ-णीललेस्सरासीओ सव्वजीवरासिस्स तिभागो देसूणो । किण्हलेस्सियरासी तिभागो सादिरेओ । गुणपडिवण्णाणमवहारकालं पुरदो भणिस्सामो ।
उक्त तीन लेझ्यावाले मिथ्यादृष्टि जीवोंकी अनन्तत्वकी अपेक्षा, और सासादनसम्यग्दृष्टि भादि गुणस्थानवी जीवोंकी पल्योपमके असंख्यातवें भागत्वकी अपेक्षा ओघप्रमाणके साथ समानता पाई जाती है, इसलिये सूत्र में 'ओघं' ऐसा कहा है। विशेष अर्थात् पर्यायार्थिक नयका अवलम्बन करने पर तो उक्त तीन लेश्यावाले जीवोंके प्रमाणकी ओघप्रमाणप्ररूपणाके साथ समानता नहीं है, क्योंकि, ऐसा मान लेने पर शेष लेश्याओंसे उपलक्षित जीवोंका प्रकृत गुणस्थानों में रहना असंभव मानना पड़ेगा। अब यहां पर ध्रुवराशिका कथन करते हैं। वह इसप्रकार है-सिद्धराशि, सासादनसम्यग्दृष्टि आदि तेरह गुणस्थानप्रतिपन्न राशि और पीत, पश तथा शुक्ललेश्यावाले मिथ्यादृष्टियोंकी राशिको, तथा इन सर्व राशियोंके धर्गमें कृष्ण, नील और कापोतलेश्यावाली मिथ्यादृष्टि राशिका भाग देनेसे जो लब्ध आवे उसे सर्व जीवराशिमें मिला देने पर कृष्ण, नील और कापोतलेश्यासे युक्त मिथ्याष्टि जीवों की ध्रुवराशि होती है। इसे तीनसे गुणित करके जो प्रमाण हो उसे आवलीके असंख्यातवें भागसे भाजित करने पर जो लब्ध आवे उसे उसी में मिला देने पर कापोतलेश्यासे युक्त जीवोंकी ध्रुवराशि होती है। पूर्वोक्त भागहारको अभ्यधिक करके और उसका त्रिगुणित ध्रुवराशिमें भाग देने पर जो लब्ध आवे उसे उसी त्रिगुणित ध्रुवराशिमें मिला देने पर नीललेश्यासे युक्त जीवोंकी ध्रुवराशि होती है। इसे आवलीके असंख्यातवें भागसे भाजित करने पर जो लब्ध आवे उसे उसीमेंसे घटा देने पर कृष्णलेश्यासे युक्त जीवोंकी ध्रुवराशि होती है। कापोतलेश्यासे युक्त और नीललेश्यासे युक्त प्रत्येक जीवराशि सर्व जीवराशिके कुछ कम तीसरे भागप्रमाण है। तथा कृष्णलेश्यासे युक्त जीवराशि कुछ अधिक तीसरे भाग प्रमाण है। उक्त तीन लेश्याओंसे युक्त गुणस्थानप्रतिपन्न जीवोंके भवहारकालका कथन आगे करेंगे।
खेत्तादो असुहतिया अणंतलोगा कमेण परिहीणा। कालादो तीदादो अणंतगुणिदा कमा हीणा ।। केवलणाणाणंतिममागा मावाद किण्हतियजीवा ॥ गो. जी. ५३७,५३९.
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