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________________ १, २, १०२. ] दवमाणानुगमे कायमग्गणा अप्पा बहुगपरूवणं [ ३७७ काइयपत्तेयसरीरअपज्जत्तदव्वमसंखेज्जगुणं । बादरवणफइकाइयपत्तेयसरीरा विसेसाहिया । बादरणिगोदपदिदिअपज्जत्तदव्यमसंखेजगुणं । को गुणगारो ? असंखेजा लोगा । उवरि पणारस पदाणि पुव्वं व | अहवा सव्वत्थोवं बादरवणप्फइकाइयपत्तेयसरीरपज्जत्तदव्वं । बादरणिगोदपदिद्विदपज्जत्तदव्वमसंखेजगुणं । बादरवणप्फइकाइयपत्तेय सरीरअपज्जतदव्यमसंखेज्जगुणं । बादरवणप्फइकाइयपत्तेयसरीरा विसेसाहिया । बादरणिगोदपदिट्ठिदअपज्जत्तदव्वं असंखेज्जगुणं । बादरणिगोदपदिट्ठिदा विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? बादरणि गोदपदिट्ठिदपज्जत्तमेत्तेण । उवरिमपणारस पदाणि पुव्त्रं व । 1 अपर्याप्त द्रव्य बादर निगोदप्रतिष्ठित पर्याप्त द्रव्यसे असंख्यातगुणा है । बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीव बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर अपर्याप्त द्रव्यसे विशेष अधिक हैं। बादर निगोद प्रतिष्ठित अपर्याप्त द्रव्य बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर द्रव्यसे असंख्यात - गुणा है | गुणकार क्या है ? असंख्यात लोक गुणकार है । इसके ऊपर पन्द्रह स्थान पहलेके समान हैं । अथवा, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त द्रव्य सबसे स्तोक है । बादर निगोद प्रतिष्ठित पर्याप्त द्रव्य उससे असंख्यातगुणा है । बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर अपर्याप्त द्रव्य बादर निगोद प्रतिष्ठित पर्याप्त द्रव्यसे असंख्यातगुणा है । बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीव बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर अपर्याप्त द्रव्यसे विशेष अधिक हैं । बादर निगोदप्रतिष्ठित अपर्याप्त द्रव्य बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीवोंसे असंख्यातगुणा है । बादर निगोदप्रतिष्ठित जीव बादर निगोदप्रतिष्ठित अपर्याप्त द्रव्यसे विशेष अधिक हैं । कितनेमात्र विशेषसे अधिक हैं ? बादर निगोदप्रतिष्ठित पर्याप्तोंका जितना प्रमाण है तन्मात्र विशेष से अधिक हैं । इसके ऊपर पन्द्रह स्थान पहले के समान हैं । विशेषार्थ- ऊपर दिये हुए तीन कोष्ठक और आगे दिये हुए निम्न कोष्ठकसे इस बातका ज्ञान अच्छे प्रकारसे हो जाता है कि प्रथम स्थानसे दूसरे में और तीसरे आदिसे चौथे आदिमें क्या अन्तर है । यद्यपि इन कोष्ठकों में परस्पर अल्पबहुत्वको विशेषता नहीं बतलाई है, तो भी इनसे अल्पबहुत्वका क्रम अवश्य ही समझमें आ जाता है । विशेषताका ज्ञान मूलसे किया जा सकता है । वनस्पतिके पहले कोष्ठक में नौ भेदोंकी मुख्यतासे, दूसरे में उन नौ भेदोंमें ६ और मिलाकर पन्द्रह भेदोंकी मुख्यतासे और निम्न तीसरे कोष्ठक में उपर्युक्त पद्रन्ह भेदोंमें छह भेद और मिलाकर इक्कीस भेदोंकी मुख्यता से अल्पबहुत्व बतलाया है। जहां 'ऊपर सात स्थान पहलेके समान हैं, पन्द्रह स्थान पहले के समान है' इत्यादि कहा है उसका यह अभिप्राय है कि प्रारंभके जितने स्थानों में विशेषता कहनी थी वह कह दी। आगे अन्तके सात या पन्द्रह आदि स्थान पहले के कहे हुए जोड़ लेना चाहिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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