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________________ ३७२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [ १,२, १०२. : संपहि एदेसु णवपदेसु णिगोदछपदाणि पविसिय पण्णारसपदअप्पाबहुगं वत्तइस्सामो। सव्वत्थोवा बादरणिगोदपज्जत्ता। बादरवणप्फइकाइयपज्जत्ता विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? बादरवणप्फइकाइयपत्तेयसरीरपज्जत्तेण' पदरस्स असंखेजदिभागमेत्तेण । उपरि अट्ठपदाणि पुव्वं व । अहवा सब्बत्थोवा बादरणिगोदपज्जत्ता । बादरवणप्फइकाइयपज्जता विसेसाहिया। बादरणिगोदअपज्जत्ता असंखेजगुणा । को गुणगारो ? असंखेजा लोगा । बादरवणप्फइकाइयअपज्जत्ता विसेसाहिया। केत्तियमेत्तेण ? बादरवणप्फइकाइयपत्तेयसरीरअपज्जत्तअसंखेज्जलोगमेत्तेण । उवरि सत्तपदाणि पुव्वं व । अहवा सव्वत्थोवा वादरणिगोदपज्जत्ता। बादरवणप्फइकाइयपज्जत्ता विसेसाहिया। बादरणिगोदअपजत्ता । असंखेजगुणा । बादरवणप्फइकाइयअपज्जत्ता विसेसाहिया । बादरणिगोदा विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? यादरवणप्फइकाइयपत्तेयसरीरअपज्जत्तेणूणवादरणिगोदपज्जत्तमेतेण । बादरघणप्फइकाइया विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? बादरवणप्फइकाइयपत्तेयसरीरमेत्तेण । उवरि ___ अब इन पूर्वोक्त नौ स्थानों में निगोदसंबन्धी छह स्थानोंका प्रवेश कराके पन्द्रह स्थानों में अल्पबहुत्वको बतलाते हैं- बादरनिगोद पर्याप्त जीव सबसे स्तोक हैं। बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त जीव बादरनिगोद पर्याप्तोसे विशेष अधिक हैं। कितने अधिक हैं ? बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त, जो कि जगप्रतरके असंख्यातवें भाग हैं, तन्मात्र विशेषसे आधिक हैं। इसके ऊपर आठ स्थान पहलेके समान हैं। अथवा, बादरनिगोद पर्याप्त जीव सबसे स्तोक है । बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त जीव उनसे विशेष अधिक हैं। बादरनिगोद अपर्याप्त जीव बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्तोंसे असंख्यातगुणे हैं। गुणकार क्या है ? असंख्यात लोक गुणकार है। बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त जीव बादरनिगोद अपर्याप्तोंसे विशेष अधिक हैं। कितनेमात्र विशेषसे अधिक हैं ? बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर अपर्याप्त, जो कि असंख्यात लोकप्रमाण हैं, तन्मात्र विशेषसे अधिक हैं। इसके ऊपर सात स्थान पहलेके समान हैं। अथवा, बादरनिगोद पर्याप्त जीव सबसे स्तोक हैं। बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त जीव उनसे विशेष अधिक हैं। बादरनिगोद अपर्याप्त जीव बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्तोसे असंख्यातगुणे हैं। बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त जीव बादरनिगोद अपर्याप्तोंसे विशेष अधिक हैं । बादरनिगोद जीव बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्तोंसे विशेष अधिक हैं। कितनेमात्र विशेषसे अधिक हैं ? बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर अपर्याप्तोंके प्रमाणसे न्यून बादरनिगोद पर्याप्तोंका जितना प्रमाण हो तन्मात्र विशेषसे अधिक हैं । बादर वनस्पतिकायिक जीव वादरनिगोद जीवोंसे विशेष अधिक है। कितनेमात्र विशेषसे अधिक हैं ? बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीवोंका जितना प्रमाण है तन्मात्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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