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________________ ३६८] छक्खंडागमे जीवहाणं [ १, २, १०२. मेत्तेण ? बादरपुढविकाइयपज्जत्तपरिहीणसुहुमपुढविकाइयअपजत्तमेत्तेण । एवं चेव अट्ठमो वियप्पो । णवरि पुढविकाइया विसेसाहिया । एगुत्तरवड्डिकमेण एत्तिया चेव अप्पाबहुगवियप्पा । अवहारकाल-विक्खंभसूई-सेढि-पदर-लोगे कमेण पवेसिय अप्पाबहुगे कीरमाणे वि वियप्पा लब्भंति त्ति ? ण, ताणं कमप्पवेसस्स कारणाभावा । पुढविकाइयरासिस्स संगहभेयपदुप्पायणटुं पुढविकाइयरासिस्स कमेण भेदो कीरदे । ण च अवहारकालादिसु कमेण पवेसिज्जमाणेसु पुढविकाइयरासी भिजदे । तदो एत्तिया चेव एगुत्तरवड्डिवियप्पा होति त्ति द्विदं । अंतिमवियप्पं वत्तइस्सामो। सव्वत्थोवो बादरपुढविकाइयपज्जत्तअवहारकालो। तस्सेव विक्खंभमई असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? सगविक्खंभसूईए असंखेजदिभागो। को पडिभागो ? सगअवहारकालो । अहवा सेढीए असंखेजदिभागो असंखेज्जाणि सेढिपढमवग्गमूलाणि । को पडिभागो । अवहारकालवग्गो । सेढी असंखेज. गुणा । को गुणगारो ? अवहारकालो । दव्यमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? विक्खंभसूई । उतने प्रमाणसे अधिक हैं । सूक्ष्म पृथिवीकायिक जीव पृथिवीकायिक पर्याप्तोंसे विशेष अधिक हैं । कितने प्रमाणसे अधिक हैं ? बादर पृथिवीकायिक पर्याप्तोंके प्रमाणसे हीन सूक्ष्म पृथिवीकायिक अपर्याप्तोंका जितना प्रमाण रहे उतनेसे अधिक हैं। इसप्रकार आठवां विकल्प है। इतनी विशेषता है कि पृथिवीकायिक जीव सूक्ष्म पृथिवीकायिकोंसे विशेष अधिक है। एकोत्तर वृद्धिके क्रमले अल्पबहुत्वके इतने ही विकल्प होते हैं। शंका - अवहारकाल, विष्कंभसूची, जगश्रेणी, जगप्रतर और लोक इनको क्रमसे प्रविष्ट करके अल्पबहुत्व करने पर भी विकल्प प्राप्त होते हैं ? समाधान नहीं, क्योंकि, इन अवहारकाल आदिकके क्रमप्रवेशका कोई कारण नहीं है। संग्रहरूप पृथिवीकायिक राशि के भेदोंके प्रतिपादन करनेके लिये पृथिवीकायिक राशिका क्रमसे भेद किया है । परंतु अवहारकालादिकके क्रमसे प्रविश्यमान होने पर पृथिवीकायिक राशि भेदको प्राप्त नहीं होती है। इसलिये एकोत्तर वृद्धिके क्रमसे विकल्प इतने ही होते हैं, यह बात निश्चित हो जाती है। ___ अब अन्तिम विकल्पको बतलाते है- बादर पृथिवीकायिक पर्याप्तोंका अवहारकाल सबसे स्तोक है । उन्हीं की विष्कंभसूची अवहारकालसे असंख्यातगुणी है । गुणकार क्या है ? अपनी विष्कंभसूचीका असंख्यातवां भाग गुणकार है। प्रतिभाग क्या है ? अपना अवहारकाल प्रतिभाग है। अथवा, जगश्रेणीका असंख्यातवां भाग गुणकार है जो जगश्रेणीके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है। प्रतिभाग क्या है? अपने अवहारकालका वर्ग प्रतिभाग है। जगश्रेणी विष्कंभसूचीसे असंख्यातगुणी है। गुणकार क्या है ? अपना अवहारकाल गुणकार है। उन्हींका (बादर पृथिवीकायिक पर्याप्तोंका) द्रव्य जगश्रेणीसे असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? अपनी विष्कंभसूची गुणकार है । जगप्रतर १ प्रतिपु · वज्जकमेण ' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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