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________________ छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, २, ८७. बादरवणप्फइकाइयपत्तेयसरीररासिस्स अद्धच्छेदणए विरलेऊण विगं करिय अण्णोण्णब्भत्थे कदे बादरवणप्फदिपत्तेयसरीररासी उप्पज्जदि । अहवा घणलोगछेदणएहि बादरवणप्फइपत्तेगसरीरअद्धछेयणएसु ओवट्टिदेसु लद्धं विरलेऊण रूवं पडि घणलोगं दाऊण अण्णोण्णभत्थे कए बादरवणप्फइपत्तेयसरीररासी उप्पज्जदि। बादरतेउकाइयरासीदो बादरवणप्फदिपत्तेगसरीररासिमुप्पाइज्जमाणे अहियद्धच्छेयणमेत्ते' बादरतेउकाइयरासिस्स दुउणगुणगारे कए बादरवणप्फइपत्तेगसरीररासी उप्पज्जदि । अहवा अन्भहिय है। बादर तेजस्कायिक राशिसे बादर वनस्पति प्रत्येकशरीरराशि बड़ी है, अतएव तेजस्कायिक राशिके अर्धच्छेदोंसे इस राशिके जितने अधिक अर्धच्छेद हों, उतनीवार दो रखकर परस्पर गुणित करनेसे जो राशि उत्पन्न हो उससे बादर वनस्पति प्रत्येकशरीर राशिके भाजित कर देने पर, अथवा जितने अर्धच्छेद अधिक हैं उतनीवार बादर वनस्पति प्रत्येकशरीर राशिके अर्धित करने पर, बादर तेजस्कायिक जीव राशि उत्पन्न होती है । बादर वनस्पति प्रत्येकशरीर राशिके अर्धच्छेदोंका आश्रय करके बादर तेजस्कायिक राशिके उत्पन्न करनेके दो प्रकार तो ये हुए । तीसरे प्रकारमें घनलोकके अर्धच्छेदोंका आश्रय और ले लिया जाता है। अर्थात् धनलोकके अर्धच्छेदोंसे बादर वनस्पति प्रत्येकशरीर जीव राशिके बादर तेज. स्कायिक राशिके अर्धच्छेदोंसे अधिक अर्धच्छेदोंके भाजित कर देने पर जो लब्ध आवे उतनीवार घनलोकके परस्पर गुणित करने पर आई हुई राशिका बादर वनस्पति प्रत्येकशरीर जीवराशिमें भाग देने पर बादर तेजस्कायिक जीवराशि उत्पन्न होती है। इन्ही तीनों प्रकारोंसे बादर निगोद प्रतिष्ठित जीवराशि, बादर पृथिवीकायिक, बादर अप्कायिक और बादर वायुकायिक राशिके अर्धच्छेदोंका आश्रय लेकर तेजस्कायिक राशिके उत्पन्न करने पर बारह प्रकारसे तेजस्कायिक राशिका प्रमाण उत्पन्न होता है। इन बारह भेदोंमें पूर्वोक्त पांच भेदोंके मिला देने पर तेजस्कायिक राशिकी प्ररूपणा सत्रह प्रकारसे हो जाती है। बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीवराशिके अर्धच्छेदोंको विरलित करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकको दोरूप करके परस्पर गुणित करने पर बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीवराशि उत्पन्न होती है। अथवा, घनलोकके अर्धच्छेदोंसे बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर राशिके अर्धच्छेदोंके भाजित करने पर जो लब्ध आवे उसे विरलित करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकके प्रति घनलोकको देयरूपसे देकर परस्पर गुणित करने पर बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जविराशि उत्पन्न होती है। बादर तेजस्कायिक राशिसे बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर राशिके उत्पन्न करने पर अधिक अर्धच्छेदप्रमाण बादर तेजस्कायिक राशिके दुगुणित करने पर बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीवराशि उत्पन्न होती है। अथवा, अधिक अर्धच्छेदोंको विरलित करके और १ प्रतिषु । अद्धच्छेयणयमेत्ते ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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