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________________ १, २, ८६.] दव्वपमाणाणुगमे एइंदियादिअप्पाबहुगपरूवणं [ ३२३ गुणो। को गुणगारो ? सेढी । एवं वेइंदियअपज्जताणं पि वत्तव्यं । एवं पज्जत्ताणं पि । णवरि जम्हि सूचिअंगुलस्स असंखेजदिभागमेत्ताणि घणंगुलाणि त्ति वुत्तं तम्हि सूचिअंगुलस्स संखेजदिभागमेत्ताणि त्ति वत्तव्यं । ति-चदु-पंचिंदियाणं तेसिं पज्जत्तापज्जत्ताणं पि जहाकमेण वेइंदिय-वेइंदियपज्जत्तापज्जत्ताणं भंगो । सासणादाणं मूलाघसत्थाणभंगो। परत्थाणे पयदं । तत्थ ताव एइंदियपरत्थाणं वुच्चदे- सव्वत्थोवा बादरेइंदिया। सुहुमेहंदिया असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? असंखेज्जा लोगा। तेसिं छेदणा वि असंखेज्जा लोगा। एवं चेव विदियवियप्पो । णवरि एइंदिया विसेसाहिया। अहवा सव्वत्थोवा बादरेइंदियपज्जत्ता । तेसिमपज्जत्ता असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? असंखेजा लोगा। सुहुमेइंदियअपज्जत्ता असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? असंखेज्जा लोगा । तेसिं छेयणा वि असंखेज्जा लोगा। सुहुमेइंदियपजत्ता संखेजगुणा । को गुणगारो ? संखेज्जसमया। चउत्थो वियप्पो एवं चेव । णवरि एइंदिया विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? बादरेइंदियसहिदसुहुमेइंदियअपज्जत्तमतेण । सव्वत्थोवा बादरेइंदियपज्जत्ता। तेसिमपज्जता गुणकार है। इसीप्रकार द्वीन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंका भी अल्पबहुत्व कहना चाहिये । इसीप्रकार दीन्द्रिय पर्याप्तकोंका भी कहना चाहिये । इतना विशेष है कि जहां पर सूच्यंगुलके असंख्यातवें भागमात्र घनांगुल कहे हैं वहां पर सूच्यंगुलके संख्यातवें भागमात्र घनांगुल कहना चाहिये । त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय तथा इन्हींके पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंके स्वस्थान अल्पबहुत्वका कथन यथाक्रमसे द्वीन्द्रिय, द्वीन्द्रिय पर्याप्त और द्वीन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके स्वस्थान अल्पबहुत्वके समान जानना चाहिये। इन्द्रियमाणामें सासादनसम्यग्दृष्टि आदिका स्वस्थान अल्पबहुत्व मूलोघ स्वस्थान अल्पबहुत्वके समान है। ..अब परस्थानमें अल्पबहुत्व प्रकृत है। उनमेंसे पहले एकेन्द्रियोंके परस्थान अल्पबहुत्वका कथन करते हैं- बादर एकेन्द्रिय जीव सबसे स्तोक हैं। सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव इनसे असंख्यातगुणे हैं। गुणकार क्या है ? असंख्यात लोक गुणकार है। उनके अर्धच्छेद भी असं. ख्यात लोक हैं। इसीप्रकार दूसरा विकल्प है। इतना विशेष है कि सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवोंके प्रमाणसे एकेन्द्रिय जीव विशेष अधिक हैं। अथवा, बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीव सबसे स्तोक हैं। बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीव बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंसे असंख्यातगुणे हैं। गुणकार क्या है ? असंख्यात लोक गुणकार है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीव बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोसे असंख्यतगुणे हैं। गुणकार क्या है? असंख्यात लोक गुणकार है। उनके अर्धच्छेद भी असंख्यात लोकप्रमाण हैं। सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त जीव सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकोंसे संख्यातगुणे हैं। गुणकार क्या है? संख्यात समय गुणकार है । चौथा विकल्प भी इसीप्रकार है। इतना विशेष है कि सूक्ष्म एकेन्द्रियोंके प्रमाणसे एकेन्द्रिय जीव विशेष अधिक है । कितनेमात्र विशेषसे अधिक हैं ? सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके प्रमाणमें बादर एकेन्द्रिय जीवोंके प्रमाणको मिला देने पर जो प्रमाण हो तन्मात्र विशेषसे अधिक हैं। बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीव सबसे स्तोक हैं। बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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