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१, २, ८६. ]
दवमाणागमे एइंदियादिभागाभागपरूवण
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२४० । बादरेईदियरासी सोलसमेत १६ । सुहुमेइंदियपज्जत्तरासी असीदिसयमेत्ता १८० । तेसिमपज्जत्ता सट्ठी ६० हवंति । बादरेइंदियअपज्जत्ता वारस १२ हवंति । तेसिं पज्जचा चत्तारि ४ ।
संपहि वेईदियपज्जतरासीदो वेइंदिय-तेईदियरासीणं विसेसो किं सरिसो किमहिओ हो वा इदि वृत्ते असंखेज्जगुणो हवदि । तं जहा । वुच्चदे - तेइंदिय - चउरिंदियरासीणं विसेसादो वेदिय - तेइंदियरासिविसेस असंखेज्जगुणो । तं कथं जाणिजदे ? आइरिओवदेसादो भागाभागम्हि परूविदवक्खाणादो य जाणिज्जदे । तेइंदिय - चउरिंदियरासिविसेसो पुण तेईदियपज्जत्तरासीदो बहुगो । तं कथं णव्वदे १ तेईदियअपज्जत्तरासीदो चउरिंदियरासी विसेसहीणो ति वृत्तअप्पाबहुगसुत्तादो । तेईदियपज्जत्तरासीदो पुण वेइंदियपज्जत्तरासी विसेसहीण । तं कथं व्वदे ? एदं पि अप्पाबहुग सुत्तादो चेव णव्वदे । तदो जाणिजदे जहा वीइंदियपज्जत्तरासीदो विसेसाहियतीईदियपज्जत्तरासीदो बहुदरतीईदिय- चउरिंदिय
। सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त राशि साठ ६० है । बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त राशि बारह १२ है और बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त राशि चार ४ है ।
अब द्वन्द्रय पर्याप्त राशिके प्रमाणसे द्वीन्द्रिय और त्रीन्द्रिय राशियोंका विशेष अर्थात् अन्तर क्या समान है, क्या अधिक है या हीन है ? ऐसा पूछने पर द्वीन्द्रिय पर्याप्त राशिके प्रमाणसे असंख्यातगुणा है ऐसा समझना चाहिये । वह इसप्रकार है । आगे उसीको कहते हैं— त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय राशि के विशेषसे द्वीन्द्रिय और त्रीन्द्रिय जीवराशिका विशेष असंख्यातगुणा है ।
शंका- यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान - आचार्योंके उपदेशसे और भागाभाग में प्ररूपण किये गये व्याख्यान से जाना जाता है ।
श्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय राशिका विशेष त्रीन्द्रिय पर्याप्त राशिके प्रमाणसे
अधिक है।
शंका- यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान — त्रीन्द्रिय अपर्याप्त राशिके प्रमाणसे चतुरिन्द्रिय राशि विशेष हीन है ऐसा अल्पबहुत्वके सूत्रमें कहा है, अतएव उससे जाना जाता है ।
श्रीन्द्रिय पर्याप्त राशिके प्रमाणसे द्वीन्द्रिय पर्याप्त राशिका प्रमाण विशेष हीन है । शंका- - यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान - यह भी अल्पबहुत्व के सूत्रसे ही जाना जाता है ।
इसलिये जाना जाता है कि जिसप्रकार द्वन्द्रिय पर्याप्त राशिसे श्रीन्द्रिय पर्याप्त राशि विशेष अधिक है और इससे त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय राशिका विशेष बड़ा है। श्रीन्द्रिय
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