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१, २, ८६.] दव्वपमाणाणुगमे वेइंदियादिपमाणपरूवणं
[३१९ बादरेइंदियपज्जत्ता होति । सेसमणंतखंडे कए बहुखंडा अणिदिया होति । सेसरासीदो पलिदोवमअसंखेज्जदिभागमवणेऊण सेसरासिमावलियाए असंखेजदिभाए ऊणेगखंडं पि पुणो पुध ढविय सेसबहुभागे घेत्तूण चत्तारि सरिसपुंजे काऊण ठवेयव्या । पुणो आवलियाए असंखेजदिभागं विरलेऊण अवणिदएगखंड समखंडं करिय दिण्णे तत्थ बहुखंडे पढमपुंजे पक्खित्ते वेइंदिया होति । पुणो आवलियाए असंखेजदिभागं विरलेऊण दिण्णसेसेगखंडं समखंडं करिय दिण्णे तत्थ बहुभागे विदियपुंजे पक्खित्ते तेइंदिया होति । पुब्धविरलणादो संपहि विरलणा किं सरिसा, किमधिया, किमूणा त्ति पुच्छिदे णत्थि एत्थ उवएसो । पुणो वि तप्पाओग्गमावलियाए असंखेजदिभागं विरलेऊण सेसेगखंड समखंडं करिय दिण्णे तत्थ बहुखंडे तदियपुंजे पक्खित्ते चउरिदिया होति । सेसेगखंडं चउत्थपुंजे पक्खित्ते पंचिंदियमिच्छाइट्ठी होति। वेइंदियरसिमसंखेज्जखंडे कए बहुखंडा वेइंदियअपज्जत्ता होति । सेसेगखंडं तेसिं पज्जत्ता होति । तेइंदिय-चउरिदिय-पंचिंदियाणं पि एवं चेव वत्तव्यं । पुव्वमवणिदपलिदोवमस्स असंखेजदिभागरासिमसंखेज्जखंडे कए खंड करने पर उनमेंसे बहुभागप्रमाण बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीव हैं। शेष एक भागके अनन्त खंड करने पर उनमेंसे बहुभागप्रमाण अनिन्द्रिय जीव हैं। शेष राशिमेसे पल्योपमके असंख्यातवें भागको घटा कर जो राशि अवशिष्ट रहे उसके आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण खंड करके बहु. भागमेंसे एक भागको भी पुनः पृथक् स्थापित करके शेष बहुभागको लेकर चार समान पुंज करके स्थापित कर देना चाहिये । पुनः आवलीके असंख्यातवें भ.गको विरलित करके उस विरलित राशिके प्रत्येक एकके ऊपर निकाल कर पृथक् रखे हुए एक खंडको समान खंड करके देयरूपसे दे देनेके पश्चात् उनमेंसे बहुभागोंको प्रथम पुंजमें प्रक्षिप्त करने पर द्वीन्द्रिय जीवोंका प्रमाण होता है। पुनःआवलीके असंख्यातवें भागको विरलित करके उस विरलित राशिके प्रत्येक एकके ऊपर प्रथम पुंजमें देनेसे शेष रहे हुए एक भागको समान खंड करके देयरूपसे देनेके पश्चात् उनमेंसे बहुभागको दूसरे पुंजमें मिला देने पर त्रीन्द्रिय जीवोंका प्रमाण होता है।
पूर्व विरलनसे यह दूसरा विरलन क्या समान है, क्या अधिक है, या क्या न्यून है ? ऐसा पूछने पर आचार्य उत्तर देते हैं कि इस विषयमें उपदेश नहीं पाया जाता है। फिर भी तद्योग्य आवलीके असंख्यातवें भागको विरलित करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकके ऊपर शेष एक खंडको समान खंड करके देयरूपसे दे देनेके अनन्तर उनमेंसे बहुभाग तीसरे पुंजमें मिला देने पर चतुरिन्द्रिय जीवों का प्रमाण होता है। शेष एक खंडको चौथे पुंजमें मिला देने पर पंचेन्द्रिय मिथ्यादृष्टि जीवोंका प्रमाण होता है। द्वीन्द्रिय जीवराशिके असंख्यात खंड करने पर उनमेंसे बहुभागप्रमाण द्वीन्द्रिय अपर्याप्त जीव हैं। श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रियोंका भी इसीप्रकार कथन करना चाहिये । पहले घटा कर पृथक् रक्खी ... ..प्रतिषु · पलिदोवमसंखेज्जदि- ' इति पाठः। २ गो. जी. १७८-१७९. ... ...
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