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________________ १, २, ७३.] दव्वपमाणाणुगमे देवगदिअप्पाबहुगपरूवणं [२९३ को गुणगारो ? सेढिएक्कारसवग्गमूलस्स असंखेजदिभागो असंखेज्जाणि वारसवग्गमूलाणि। को पडिभागो ? वाणवेंतरमिच्छाइट्ठिअवहारकालो पडि भागो । तस्सुवरि बम्ह-बम्होत्तरमिच्छाइट्ठिअवहारकालो असंखेज्जगुणो। को गुणगारो ? सेढिणवमवग्गमूलस्स असंखे. जदिभागो असंखेज्जाणि दसमवग्गमूलाणि । लांतव-काविहमिच्छाइडिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? सत्तमवग्गमूलस्स असंखेजदिभागो असंखेजाणि अट्ठमवग्गमूलाणि । सुक्क-महासुकमिच्छाइट्ठिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? पंचमवग्गमूलस्स असंखेजदिभागो असंखेज्जाणि छट्टमवग्गमूलाणि । सदार-सहस्सारमिच्छाइटिअवहारकालो असंखेज्जगुणो। को गुणगारो ? पंचमवग्गमूलं । तदो सदारसहस्सारदव्यमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? सगदव्यस्स असंखेजदिभागो। को पडिभागो? सगअवहारकालपडिभागो । एवं णेयव्वं पडिलोमेण जाव सणक्कुमार माहिदमिच्छाइविदव्यमिदि । तस्सुवरि वाणवेंतरमिच्छाइट्ठिविक्खंभसूई असंखेजगुणा । को गुणगारो ? तस्सेव विक्खंभसूईए असंखेजदिभागो एक्कारसवग्गमूलस्स असंखेजदिभागो असंखेज्जाणि क्या है ? जगश्रेणीके ग्यारहवें वर्गमूलका असंख्यातवां भाग गुणकार है जो जगश्रेणीके असंख्यात बारहवें वर्गमूलप्रमाण है । प्रतिभाग क्या है ? वाणव्यन्तर मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल प्रतिभाग है। सानत्कुमार और माहेन्द्रके मिथ्यादृष्टि अवहारकालके ऊपर ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? जगश्रेणीके नौवें वर्गमूलका असंख्यतवां भाग गुणकार है जो जगश्रेणीके असंख्यात दशम वर्गमूलप्रमाण है। ब्रह्मद्विकके मिथ्यादृष्टि अवहारकालसे लान्तव और कापिष्ठके मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? जगश्रेणीके सातवें वर्गमूलका असंख्यातवां भाग गुणकार है जो जगश्रेणीके असंख्यात आठवें वर्गमूलप्रमाण है। लान्तवद्विकके मिथ्यादृष्टि अवहारकालसे शुक्र और महाशुक्रके मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? जगश्रेणीके पांचवें वर्गमूलका असंख्यातवां भाग गुणकार है जो जगश्रेणीके असंख्यात छठवें वर्गमूलप्रमाण है। शुक्रद्विकके मिथ्यादृष्टि अवहारकालसे शतार और सहस्रारके मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? जगश्रेणीका पांचवां वर्गमूल गुणकार है। शतारद्विकके मिथ्यादृष्टि अवहारकालसे शतार और सहस्रारका मिथ्यादृष्टि द्रव्य असंख्यातगुणा है। गुणकार क्या है ? अपने द्रव्यका असंख्यातवां भाग गुणकार है। प्रतिभाग क्या है ? अपना अवहारकाल प्रतिभाग है। इसीप्रकार प्रतिलोमक्रमसे सानत्कुमार और माहेन्द्र कल्पके मिथ्यादृष्टियोंके प्रमाण आने तक ले जाना चाहिये। सानत्कुमारद्विकके मिथ्यादृष्टि द्रव्यके ऊपर वाणव्यन्तर मिथ्यादृष्टि विष्कंभसूची असंख्यातगुणी है। गुणकार क्या है? उन्हीं वाणव्यन्तर मिथ्यादृष्टियोंकी विष्कंभसूचीका असंख्यातवां भाग गुणकार है। अथवा, जगश्रेणीके ग्यारहवें वर्गमूलका असंख्यातवां भाग गुणकार है जो जगश्रेणीके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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