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________________ १, २, ४२.] दवपमाणाणुगमे मणुसगदिपमाणपरूवणं [२७ विदियवग्गमूले भागे हिदे लद्धस्स जत्तियाणि रूवाणि तत्तियाणि पढमवग्गमूलाणि । वियप्पो दुविहो, हेट्ठिमवियप्पो उवरिमवियप्पो चेदि । तत्थ हेडिमवियप्पं वत्तइस्सामो । विदिय-तदियवग्गमूले अण्णोण्णगुणे करिय पढमवग्गमूले भागे हिदे लद्वेण तं चेव गुणिदे अवहारकालो होदि। अहवा वेरूवे हेड्रिमवियप्पो णत्थि, सूचिअंगुलपढमवग्गमूलादो अवहारकालस्स बहुत्तादो। अट्ठरूवे वत्तइस्सामो। सूचिअंगुलविदियवग्गमूलगुणिदतदियवग्गमूलेण पढमवग्गमूलं गुणेऊण घणंगुलपढमवग्गमूले भागे हिदे अवहारकालो होदि । तं जहा- सूचिअंगुलपढमवग्गमूलेण घणंगुलपढमवग्गमूले भागे हिदे सूचिअंगुलमागच्छदि । विदियवग्गमूलगुणिदतदियवग्गमूलेण सूचिअंगुले भागे हिदे अवहारकालो आगच्छदि । घणाघणे वत्तइस्सामो । विदियवग्गमूलगुणिदतदियवग्गमूलेण अंगुलवग्गमूलं गुणेऊण तेण घणंगुलविदियत्रग्गमूलं गुणिय घणाघणंगुलविदियवग्गमूले भागे हिदे अवहारकालो आगच्छदि। तं जहा- घणंगुलविदियवग्गमूलेण घणाघणंगुल अवहारकालकी निरुक्ति इसप्रकार है-सूच्यंगुलके तृतीय वर्गमूलसे सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूलके भाजित करने पर लब्ध राशिका जितना प्रमाण हो उतने सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूल मनुष्य मिथ्यादृष्टि अवहारकालमें होते हैं। विकल्प दो प्रकारका है, अधस्तन विकल्प और उपरिम विकल्प । उनसे अधस्तन विकल्पको बतलाते हैं- सूच्यंगुलके दूसरे और तीसरे वर्गमूलका परस्पर गुणा करके जो लब्ध आवे उसका सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमलमें भाग देने पर जो लब्ध आया सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलके गुणित करने पर मनुष्य मिथ्यादृष्टि अवहारकाल होता है। अथवा, यहां द्विरूपधारामें अधस्तन विकल्प नहीं बनता है, क्योंकि, सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलसे मनुष्य मिथ्यादृष्टि अवहारकाल बहुत बड़ा है। ___ अब अष्टरूपमें अधस्तन विकल्प बतलाते हैं-सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूलसे तृतीय वर्गमूलको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलको गुणित करके लब्ध राशिका घनांगुलके प्रथम वर्गमूलमें भाग देने पर मनुष्य मिथ्यादृष्टि अवहारकाल होता है । जैसे, सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलसे घनांगुलके प्रथम वर्गमूलके भाजित करने पर सूच्यंगुल आता है। पुनः सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूलसे तृतीय वर्गमूलको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे सूच्यंगुलके भाजित करने पर मनुष्य मिथ्यादृष्टि अवहारकाल आता है। अब घनाघनमें अधस्तन विकल्प बतलाते हैं-सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूलसे सूच्यंगुलके तृतीय वर्गमूलको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे घनांगुलके द्वितीय वर्गमूलको गुणित करके आई हुई लब्ध राशिसे घनाघनांगुलके द्वितीय वर्गमूलके भाजित करने पर मनुष्य मिथ्यादृष्टि अवहारकाल आता है। जैसे, घनांगुलके द्वितीय वर्गमूलसे घनाघनांगुलके द्वितीय वर्गमूलके भाजित करने पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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