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२२८] छक्खंडागमे जीवहाणं
[१, २, ३१. एत्थ असंखेज्जासंखेजणिद्देसो सेस-असंखेज्जाणं वुदासडो । ओसप्पिणि-उस्सपिणीणिद्देसो कप्पमाणपरूवणहो। कालेणेत्ति णिदेसो खेत्तादिणियत्तणट्ठो। कधं दव्यपरूवणादो कालपरूवणा सुहुमा ? असंखेज्जासंखेज्जोवलंभणिमित्तादो पल्ल-सायर-कप्पाणमुवरिमसंखाविसेसिदजीवोवलंभणिमित्तत्तादो च । संपहि सुहुमदरपरूवणहूँ सुत्तमाह
खेत्तेण पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्तमिच्छाइट्ठीहि पदरमवहिरदि देवअवहारकालादो संखेज्जगुणहीणेण कालेण ॥ ३१॥
____एत्थ पदरगहणेण जगपदरस्स गहणं, ण पदग्गुलस्स, 'देवअवहारकालादो संखेज्जगुणहीणेण कालेण' इदि वयणण्णहाणुववत्तीदो । देवाणमवहारकाले संखेज्जरूवेहि भागे हिदे जो भागलद्धो सो पदरंगुलम्स संखेजदिभागो होदि । तं कधं जाणिजदे ? संविग्गगीदत्थ-आइरियाणमविरुद्धवयणादो णव्वदे । एसो पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्तमिच्छाइट्ठीणमवहारकालो होदि । अहवा संखेज्जरूवेहि सूचि अंगुले भागे हिदे लद्धे वग्गिदे
शेष असंख्यातोंके निराकरण करनेके लिये यहां सूत्रमें असंख्यातासंख्यात पदका ग्रहण किया है । कल्पके प्रमाणके प्ररूपण करनेके लिये अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी पदका ग्रहण किया है। क्षेत्रादि प्रमाणों के निराकरण करनेके लिये 'कालकी अपेक्षा' इस पदका ग्रहण किया है।
शंका-द्रव्यप्ररूपणासे कालप्ररूपणा सूक्ष्म कैसे है ?
समाधान-असंख्यातासंख्यातके ग्रहण करनेका निमित्त कालप्ररूपणा है। अथवा, कालप्ररूपणा पल्य, सागर और कल्पले ऊपरकी संख्यासे विशिष्ट जीवोंके ग्रहण कराने में निमित्त है, इसलिये द्रव्यप्ररूपणाले कालप्ररूपणा सक्षम है।
अब अत्यंत सूक्ष्मप्ररूपणाके प्ररूपण करने के लिये आगेका सूत्र कहते हैं
क्षेत्रकी अपेक्षा पंचेन्द्रिय तियंच पर्याप्त मिथ्यादृष्टियों द्वारा देव अवहारकालसे संख्यातगुणे हीन कालसे जगप्रतर अपहत होता है ॥ ३१ ॥
यहां सूत्रमें प्रतर पदके ग्रहण करनेसे जगप्रतरका ग्रहण किया है, प्रतरांगुल का नहीं, क्योंकि, यदि ऐसा न माना जाय तो 'देव अवहारकालकी अपेक्षा संख्यातगुणे हीन कालसे, यह बचन नहीं बन सकता है । देवोंके अवहारकालमें संख्यातका भाग देने पर जो लब्ध आवे वह प्रतरांगुलका संख्यातवां भाग होता है।
शंका-यह कैसे जाना जाता है?
समाधान-संविग्न होकर जिन्होंने पदार्थीका निरूपण किया है ऐसे आचार्योंके भविरुद्ध उपदेशसे जाना जाता है कि देवोंके अवहारकालमें संख्यातका भाग देने पर प्रतरांगुलका संख्यतावां भाग लब्ध आता है। और यही पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल है। अथवा, संख्यातसे सूच्यंगुलके भाजित करने पर जो लब्ध आधे उसका वर्ग कर देने पर पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त मिथ्याष्टियोंका अवहारकाल होता
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