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४.] छक्खंडागमे जीवाणं
[१, २, ५ दिणे तत्थ बहुखंडाणि च्छोड्डिय एगखंडगहिदे मिच्छाइद्विरासिपमाणं होदि । विरलिदं गदं । तं चेव भागहारं सलागभूदं ठवेदूण मिच्छाइद्विरासिपमाणं सव्यपज्जए अवहिरिजदि, सलागादो एगरूवं अवणिज्जदि । पुणो मिच्छाइट्ठिरासिपमाणं सबपज्जयम्मि अवहिरिज्जदि, सलागादो एगं रूवमवणिज्जदि । एवं पुणो पुणो कीरमाणे सव्वपज्जओ व सलागाओ च जुगवं णिद्विदाओ। तत्थ एगवारमवहारिदपमाणं मिच्छाइद्विरासी होदि । अवहिदं गद । मिच्छाइद्विरासिस्स पमाणविसए सोदाराणं णिच्छयुप्पायणटुं मिच्छाइट्ठिरासिस्स पमाणपरूवणं वग्गट्ठाणे खंडिद-भाजिद विरलिद-अवहिद-पमाण-कारण-णिरुत्तिवियप्पेहि वत्तइस्सामो । सुत्ताभावे कधमेदं वुच्चदे ? सुत्तेण सूचिदत्तादो। तं जहा
सिद्धतेरसगुणहाणपमाणं मिच्छाइद्विरासिभाजिदसिद्धतेरसगुणहाणपमाणवग्गं च
संपूर्ण पर्यायोंके समान खण्ड करके देयरूपसे दे देने पर उनमेंसे बहुत खण्डोंको छोड़कर और एक खण्डके ग्रहण करने पर मिथ्यादृष्टि जीवराशिका प्रमाण होता है। इसप्रकार विरलितका वर्णन समाप्त हुआ।
उसी भागहारको शलाकारूपसे स्थापित करके संपूर्ण पर्यायोंमेंसे मिथ्यादृष्टि जीवराशिके प्रमाणको कम करना चाहिये, एकवार कम किया इसलिये शलाकाराशिमेंसे एक घटा देना चाहिये। दूसरीवार मिथ्यादृष्टि जीवराशिके प्रमाणको शेष संपूर्ण पर्यायों से घटा देना चाहिये । दूसरीवार मिथ्यादृष्टि जीवराशिके प्रमाणको कम किया इसलिये शलाका राशिमेसे एक और कम कर देना चाहिये । इसप्रकार पुनः पुनः करने पर संपूर्ण पर्यायें और उसीप्रकार शलाकाराशि युगपत् समाप्त हो जाती हैं। यहां पर संपूर्ण पर्यायोंमेंसे जितना प्रमाण एकवार घटाया गया है तत्प्रमाण मिथ्यादृष्टि जीवराशि होती है। इसप्रकार अपहृतका कथन समाप्त हुआ।
अब आगे मिथ्यादृष्टि जीवोंकी राशिके विषय में श्रोताओंको निश्चय उत्पन्न करानेके लिये वर्गस्थानमें खण्डित, भाजित, विरलित, अपहृत, प्रमाण, कारण, निरुक्ति और विकल्पके द्वारा मिथ्यादृष्टि जीवराशिका प्रमाण बतलाते हैं।
शंका-वर्गस्थानमें खण्डित आदिकके द्वारा मिथ्यादृष्टि जीवराशिके प्रमाणका प्ररूपक सूत्र नहीं होने पर इसका कथन क्यों किया जा रहा है?
समाधान-सूत्रसे सूचित होने के कारण इसका कथन किया है, जो इसप्रकार है
सिद्ध और सासादनसम्यग्दृष्टि आदि तेरह गुणस्थानवी जीवराशिको तथा सिद्ध और तेरह गुणस्थानवी जीवराशिके वर्गमें मिथ्यादृष्टि जीवराशिके प्रमाणका भाग देने पर
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