________________
वर्गणाखंड-विचार
२९
महापरिमाणाए उवसंहारस्स इमस्स वेयणाखंडस्स वेयणा-भावो?ण, अवयवेहिंतो एयतेण पुधभूदस्सअवयविस्स अणुवलंभादो। ण च वेयणाए बहुत्तमणिट्टमिाञ्छजमाणत्तादो। कधं भूदवलिस्स गोदमत्तं ? किं तस्स गोदमत्तेण? कधमण्णहा मंगलस्स णिबद्धत्तं ? ण, भूदबलिस्स खंड-गंथं पडि कत्तारत्ताभावादो। ण च अण्णेण कय-गंथा. हियाराणं एगदेसस्स पुब्विहा (पुब्विल्ल) सद्दथ-संदब्भस्स परूवओ कत्तारो होदि, अइप्पसंगादी। अधवा भूदबली गोदमो चेव एगाहिप्पायचादो। तदो सिद्धं णिबद्धमंगलत्तं पि । उवरि उच्चमाणेसु तिसु खंडेसु... इत्यादि।
१ शंका- इनमें से, अर्थात् निबद्ध और अनिबद्ध मंगलोंमेंसे, यह मंगल निबद्ध है या अनिबद्ध ?
समाधान-यह निबद्ध मंगल नहीं है, क्योंकि कृति आदि चौवीस अवयवोंधाले महाकर्मप्रकृतिपाहुडके आदिमें गोतमस्वामीद्वारा इसका प्ररूपण किया गया है । भूतबलि स्वामीने उसे वहांसे लाकर वेदनाखंडके आदिमें मंगलके निमित्त रख दिया है। इसलिये उसमें निबद्धत्वका विरोध है। वेदनाखंड कुछ महाकर्मप्रकृतिपाहुड तो है नहीं, क्योंकि अवयवको ही अवयवी मानने विरोध आता है। और भूतबलि गौतमस्वामी हो नहीं सकते, क्योंकि विकल श्रुतके धारक और धरसेनाचार्य के शिष्य ऐसे भूतबलिमें सकलश्रुतके धारक और वर्धमानस्वामीके शिष्य ऐसे गौतमपनेका विरोध है। और कोई प्रकार निबद्ध मंगलपनेका हेतु होता नहीं है, इसलिये यह मंगल अनिबद्ध मंगल है । अथवा, यह निबद्ध मंगल भी हो सकता है।
२ शंका-वेदनाखंड आदि खंडोंमें समाविष्ट (ग्रंथ ) को महाकर्मप्रकृतिपाहुडपना कैसे प्राप्त हो सकता है ?
__ समाधान-क्योंकि कृति आदि चौवीस अनुयोगद्वारों से सर्वथा पृथक्भूत महाकर्मप्रकृतिपाहुडकी कोई सत्ता नहीं है ।
३ शंका-इन अनुयोगद्वारोंमें कर्मप्रकृतिपाहुडत्व मान लेनेसे तो बहुतसे पाहुड माननेका प्रसंग आ जाता है ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि यह बात कथंचित् अर्थात् एक दृष्टिसे अभीष्ट है।
४ शंका-महापरिमाणवाली वेदनाके उपसंहाररूप इस वेदनाखंडको वेदना अनुयोगद्वार कैसे माना जाय !
समाधान-ऐसा नहीं है, क्योंकि अवयवोंसे एकान्ततः पृथक्भूत अवयवी तो पाया नहीं जाता। और इससे यदि एकसे अधिक वेदना माननेका प्रसंग आता है तो वेदनाके बहुत्वसे कोई अनिष्ट भी नहीं, क्योंकि वह बात इष्ट ही है।
५ शंका-भूतबलिको गौतम कैसे मान लिया जाय ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org