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१, १.] संत-परूवणाणुयोगद्दारे दंसण-आलावषण्णणं
[७३९ चरिंदियजादि-आदी वे जादीओ, तसकाओ, पण्णारह जोग, तिणि वेद अवगदवेदो वि अत्थि, चत्तारि कसाय अकसाओ वि अस्थि, सत्त णाण, सत्त संजम, चक्खुदंसण, दव्व-भावहिं छ लेस्साओ, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, छ सम्मत्तं, सणिणो असण्णिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होति अणागारुवजुत्ता वा ।
तेसिं चेव पञ्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि बारह गुणढाणाणि, तिण्णि जीवसमासा, छ पज्जत्तीओ पंच पज्जत्तीओ, दस पाण णव पाण अह पाण, चत्तारि सण्णाओ खीणसण्णा वि अस्थि, चत्तारि गदीओ, चउरिदियजादि-आदी दो जादीओ, तसकाओ, एगारह जोग, तिण्णि वेद अवगदवेदो वि अत्थि, चत्तारि कसाय अकसाओ वि अत्थि, सत्त णाण, सत्त संजम, चक्खुदंसण, दव-भावेहि छ लेस्साओ, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, छ सम्मत्तं, सण्णिणो असण्णिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता हाँति अणागारु
चतुरिन्द्रियजाति आदि दो जातियां, त्रसकाय, पन्द्रहों योग, तीनों वेद तथा अपगतवेदस्थान भी है, चारों कषाय तथा अकषायस्थान भी है, केवलज्ञानके विना सात ज्ञान, सातों संयम, चक्षुदर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक, छहों सम्यक्त्व, संशिक, असंशिक; आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
__ उन्हीं चक्षुदर्शनी जीवोंके पर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-आदिके बारह गुणस्थान, चतुरिन्द्रिय-पर्याप्त, असंक्षीपंचेन्द्रिय-पर्याप्त और संक्षीपंचेन्द्रिय-पर्याप्त ये तीन जीवसमास; छहों पर्याप्तियां, पांच पर्याप्तियां दशों प्राण, नौ प्राण, आठ प्राण; चारों संक्षाएं तथा क्षीणसंज्ञास्थान भी है, चारों गतियां, चतुरिन्द्रियजाति आदि दो जातियां, त्रसकाय, पर्याप्तकालभावी ग्यारह योग, तीनों वेद तथा अपगतवेदस्थान भी है, चारों कषाय तथा अकषायस्थान भी है, केवलज्ञानके विना सात ज्ञान, सातों संयम, चक्षुदर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिकछहों सम्यक्त्व, संक्षिक,
A
केव.
चक्षु
नं. ३८१
चक्षुदर्शनी जीवोंके सामान्य आलाप. गु. जी. प. प्रा. | सं.ग. ई.का. यो. वे. क. झा. संय. द. | ले. भ. स. संहि. आ. उ.। १२/६ प. १०,७४/४२११५/३४ ७ । ७ मि. च. प. ६अ. ९,७..
.भा.६ भ. सं. आहा. साका. से च.अ. ५५. ८,६
विना
असं. अना. अना. क्षी. असं.प.५अ.
असं.अ. सं.प. सं.अ.
अपग. अकषा,
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