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७३८] छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[१, १. पंच णाण, असंजमो, तिणि दंसण, दबेण काउ-सुक्कलेस्साओ, भावेण छ लेस्साओ; भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, पंच सम्मत्तं, सणिणो असण्णिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा। मिच्छाइटिप्पहुडिं जाव असंजदसम्माइट्टि त्ति मूलोघ-भंगा ।
एवं संजममग्गणा समत्ता । दसणाणुवादेण ओघालावा मूलोघ-भंगो ।
चक्खुदंसणीणं मण्णमाणे अत्थि बारह गुणट्ठाणाणि, छ जीवसमासा, छ पजतीओ छ अपज्जत्तीओ पंच पञ्जत्तीओ पंच अपज्जत्तीओ, दस पाण सत्त पाण णव पाण सत्त पाण अट्ठ पाण छ पाण, चत्तारि सण्णाओ खीणसण्णा वि अस्थि, चत्तारि गईओ,
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तीन खान ये पांच ज्ञान; असंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ल लेश्याएं, भावसे छहों लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक सम्यग्मिथ्यात्वके बिना पांच सम्यक्त्व, संक्षिक, असंशिक, आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तकके असंयत जीवोंके आलाप मूल ओघालापोंके समान जानना चाहिए ।
इसप्रकार संयममार्गणा समाप्त हुई। दर्शनमार्गणाके अनुवादसे ओघालाप मूल ओघालापोंके समान होते हैं।
चक्षुदर्शनी जीवोंके सामान्य आलाप कहने पर-आदिके बारह गुणस्थान, चतुरि. न्द्रिय-पर्याप्त, चतुरिन्द्रिय-अपर्याप्त, असंक्षीपंचेन्द्रिय-पर्याप्त, असंहीपंचेन्द्रिय-अपर्याप्त, संक्षी. पंचेन्द्रिय-पर्याप्त और संक्षीपंचेन्द्रिय अपर्याप्त ये छह जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, छहों अपर्यप्तियां पांच पर्याप्तियां, पांच अपर्याप्तियां; दशों प्राण, सात प्राण; नौ प्राण, सात प्राण; आठ प्राण, छह प्राण, चारों संज्ञाएं तथा क्षीणसंशास्थान भी है चारों गतियां,
नं. ३८०
असंयत जीवोंके अपर्याप्त आलाप. | गु.जी. प. प्रा. सं. ग. | इं.का. यो. | वे.क. शा. संय. द. | ले. भ. स. संलि. आ. उ. |
| कुश्रु. असं. के. द. का. म. सम्य. सं. आहा. साका. वै.मि. मति बिना. शु. अ. विना. असं. अना. अना. कार्म. श्रुत.
| अव.
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