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________________ ५९२ ] छखंडागमे जीवाण [ १, १. काइया दुविहा पज्जत्ता अपज्जन्त्ता, तसकाइया दुविहा सगलिंदिया विगलिंदिया, सगलिं, दिया दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, विगलिंदिया दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता इदि छ जीवसमासा | तिष्णिणिव्यत्तिपज्जत्तजीवसमासा तिण्णि णिव्वत्तिअपज्जत्तजीवसमासा तिण्णि लद्धिअपज्जत्तजीवसमासा एवं णव जीवसमासा हवंति । थावरकाइया दुविहा बादरा सुहुमा, बादरा दुबिहा पज्जता अपज्जत्ता, सुहुमा दुविहा पज्जता अपज्जत्ता, तसकाइया दुविहा सगलिंदिया वियलिंदिया त्ति, सयलिंदिया दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, विगलिंदिया दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता एवं अट्ठ जविसमासा । चत्तारि णिव्वत्तिपञ्जत्तजीवसमासा चत्तारि णिव्वत्तिअपज्जतजीव समासा चत्तारि लद्धिअपजत्तजीवसमासा एवं बारस जीवसमासा हवंति । थावरकाइया दुविहा बादरा सुहुमा, वादरा दुबिहा पत्ता अपजत्ता, सुहुमकाइया दुविहा पज्जत्ता अपजत्ता, तसकाइया दुविहा पंचिदिया अपंचिंदिया, पंचिंदिया दुविहा सण्णिणो असण्णिणो, सण्णिणो दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, असणिणो दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, अपंचिंदिया दुविहा पज्जत्ता अपज्जता एवं दस जविसमासा हवंति । पंच णिव्यत्तिपज्जत्तजीवसमासा पंच गिव्वत्तिअपज्जत होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । जसकायिक जीव दो प्रकार के होते हैं, सकलेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय | सकलेन्द्रिय जीव दो प्रकार के होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । विकलेन्द्रिय जीव दो प्रकार के होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । इसप्रकार छह जीवसमास कहे जाते हैं । एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और सकलेन्द्रियके तीन निर्वृत्तिपर्याप्तक जीवसमास, तीन निर्वृत्यपर्याप्तक जीवसमास और तीन लब्ध्यपर्याप्तक जीवसमास इसप्रकार नौ जीवसमास होते हैं। स्थावरकायिक जीव दो प्रकार के होते हैं, बादर और सूक्ष्म । बादर जीव दो प्रकार के होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । सूक्ष्म जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । त्रसकायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, सकलेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय | सकलेन्द्रिय जीव दो प्रकार के होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । विकलेन्द्रिय जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । इसप्रकार आठ जीवसमास होते हैं। बादर स्थावरकायिक, सूक्ष्म स्थावरकायिक, सकलेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवों के चार निर्वृत्तिपर्याप्तक जीवसमास, चार निर्वृत्यपर्याप्तक जीवसमास और चार लब्ध्यपर्याप्तक जीवसमास इसप्रकार बारह जीवसमास होते हैं। स्थावरकायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, बादर और सूक्ष्म । बादरकायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । सूक्ष्मकायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । त्रसकायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, पंचेन्द्रिय और अपंचेन्द्रिय (विकलेन्द्रिय) । पंचेन्द्रिय जीव दो प्रकारके होते हैं, संशिक और असंशिक | संशिक जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । असंशिक जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । अपंचेन्द्रिय जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । इसप्रकार दश जीवसमास होते हैं। बादर स्थावरकायिक, सूक्ष्म स्थावरकायिक, संक्षी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001396
Book TitleShatkhandagama Pustak 02
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1940
Total Pages568
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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