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________________ १, १.] संत-परूवणाणुयोगद्दारे काय-आलाववण्णणं [५९१ ___ कायाणुवादेण ओघालावे भण्णमाणे' अत्थि चोद्दस गुणहाणाणि, दो वा तिण्णि वा, चत्तारि वा छव्या, छन्ना णव वा, अट्ट वा बारह वा, दस वा पण्णारह वा, बारस वा अट्ठारह वा, चोद्दस वा एकव्वीस वा, सोलस वा चउवीस वा, अट्ठारह वा सत्तावीस वा, वीस वा तीस वा, बावीस वा तेत्तीस वा, चउवीस वा छत्तीस वा, छब्बीस वा एगुणचालीस वा, अट्ठावीस वा बायालीस वा, तीस वा पंचेतालीस वा, बत्तीस वा अट्ठ. तालीस वा, चउतीस वा एकपंचास वा, छत्तीस वा चउपचास वा, अट्टत्तीस वा सत्तपंचास वा जीवसमासा । दो जीवसमासेत्ति भणिदे पज्जत्ता अपज्जत्ता इदि सव्ये जीवा दुविहा भवंति, अदो दो जीवसमासा वुच्चंति। तिण्णि जीवसमासेत्ति वुत्ते णिव्यत्तिपज्जत्ता णिव्यत्ति. अपज्जत्ता लद्धिअपज्जत्ता इदि तिणि जीवसमासा हवंति । चत्तारि वा इदि वुत्ते तसकाइया दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, थावरकाइया दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता इदि चत्तारि जीवसमासा। छव्या इदि वुत्ते दो णिव्यत्तिपज्जत्तजीवसमासा दो णिव्यत्तिअपज्जत्तजीवसमासा दो लद्धिअपज्जत्तजीवसमासा एवं छ जीवसमासा । अधवा थावर कायमार्गणाके अनुवादसे ओघालाप कहने पर-चौदहों गुणस्थान होते हैं। दो अथवा तीन, चार अथवा छह, छह अथवा नौ, आठ अथवा बारह, दश अथवा पन्द्रह, बारह अथवा अठारह, चौदह अथवा इक्कीस, सोलहा अथवा चौवीस. अठारह अथवा सत्तावीस. बीस अथवा तीस, बावीस अथवा तेतीस, चौवीस अथवा छत्तीस, छब्बीस अथवा उनचालीस, अट्ठावीस अथवा बयालीस, तीस अथवा पैंतालं.स, बत्तीस अथवा अड़तालीस, चौतीस अथवा एकावन, छत्तीस अथवा चौपन, अडतीस अथवा सत्तावन जीवसमास होते हैं। आगे इन्हींका स्पष्टीकरण करते हैं दो जीवसमास होते हैं ऐसा कहने पर पर्याप्तक और अपर्याप्तकके भेदसे सभी जीव दो प्रकारके होते हैं; अतएव दो जीवसमास कहे जाते हैं। तीन जीवसमास होते हैं ऐसा कहने पर निवृत्तिपर्याप्तक, नित्यपर्याप्तक और लध्यपर्याप्तक इसप्रकार तीन जीवसमास होते हैं। चार जीवसमास होते हैं ऐसा कहने पर त्रसकायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । स्थावरकायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक इसप्रकार चार जीवसमास कहे जाते हैं। छह जीवसमास होते हैं ऐसा कहने पर त्रस और स्थावरके दोनिवृत्तिपर्याप्तक जीवसमास, दो निर्वृत्यपर्याप्तक जीवसमास और दो लब्ध्यपर्याप्तक जीवसमास इसप्रकार छह जीवसमास कहे जाते हैं। अथवा, स्थावरकायिक जवि दो प्रकारके १ प्रतिषु ओघालावे भण्णमाणे' इति पाठो नास्ति । २ प्रतिषु 'अट्ठावीस वा' इति पाठः । ३ प्रतिधु चोवीस वा तेत्तीस वा' इति पाठव्युतक्रमः। अत उपरि प्रतिषु चउतीस वा' इति पाठोऽधिकः । ४ प्रतिषु । एतालीस ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001396
Book TitleShatkhandagama Pustak 02
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1940
Total Pages568
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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