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१, १.] संत-परूषणाणुयोगद्दारे इंदिय-आलाववण्णणं
[५७९ भावण किण्ह-णील-काउलेस्सा, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, मिच्छत्तं, असणिणो, आहारिणो, सागारुखजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा ।
तेसिं चेव अपज्जत्ताणं भण्णमाणे अस्थि एयं गुणट्ठाणं, एओ जीवसमासो, पंच अपज्जत्तीओ, पंच पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिरिक्खगदी, तीइंदियजादी, तसकाओ, दो जोग, णबुंसयवेद, चत्तारि कसाय, दो अण्णाण, असंजम, अचक्खुदंसण, दव्वेण काउसुक्कलेस्सा, भावेण किण्ह-णील-काउलेस्साओ; भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, मिच्छत्तं, असणिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा।।
एवं तीइंदियणिव्यत्तिपञ्जताणं पजत्त-णामकम्मोदयाणं तिण्णि आलावा वत्तम्वा । लद्धि-अपजत्ताणं पि अपज्जत्त-णामकम्मोदयाणं एगो आलावो वत्तव्यो ।
चउरिदियाणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणट्ठाणं, दो जीवसमासा, पंच पज्जत्तीओ
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दर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे कृष्ण, नील और कापोत लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक; मिथ्यात्व, असंशिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
उन्हीं त्रीन्द्रिय जीवोंके अपर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, एक त्रीन्द्रिय-अपर्याप्त जीवसमास, पांच अपर्याप्तियां, आदिकी तीन इन्द्रियां. कायबल और आयु ये पांच प्राण, चारों संज्ञाएं, तिर्यंचगति, त्रीन्द्रियजाति, प्रसकाय, औदारिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग ये दो योग, नपुंसकवेद, चारों कषाय, कुमति और कुश्रुत ये दो अज्ञान, असंयम, अचक्षुदर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ल लेश्याएं, भावसे कृष्ण, नील और कापोत लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक; मिथ्यात्व, असंशिक, आहारक, भनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
इसीप्रकार पर्याप्त नामकर्मके उदयवाले त्रीन्द्रिय निवृत्तिपर्याप्तक जीवोंके सामान्य, पर्याप्त और अपर्याप्त ये तीन आलाप कहना चाहिए । अपर्याप्त नामकर्मके उदयवाले श्रीन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकोंके भी एक अपर्याप्त आलाप कहना चाहिए।
चतुरिन्द्रिय जीवोंके सामान्य आलाप कहने पर-एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, चतुरि
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नं. १९७
त्रीन्द्रिय जीवोंके अपर्याप्त आलाप. | गु. जी. प. प्रा. सं. ग. इं. का. यो. वे. क. ज्ञा. । संय . द. । ले. भ. स. सन्नि. आ. उ. | |११५५ ४ ११ १२ १४ २ । १ १ द्र.२२११२२ मि. त्री. अ. ति. त्री... औ.मि.. । कुम । असं . अच. का. भ. मि. असं. आहा. साका. अ. जा.. काम. कश्र.।
अना.
अना. भा.३ अशु.
त्रस.
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