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१, १.] संत-परूवणाणुयोगद्दारे गदि-आलाववण्णणं
[५६३ सम्मत्तं, सण्णिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा"।
संपहि मिच्छाइटिप्पहुडि जाव असंजदसम्माइट्टि त्ति ताव चदुण्हं गुणट्ठाणाणं सोधम्म-भंगो । णवरि उवरि सव्वत्थ इत्थिवेदो णत्थि, पुरिसवेदो चेव वत्तव्यो । ओघालावे भण्णमाणे दव्येण काउ-सुक्क उक्कस्सतेउ-जहण्णपम्मलेस्साओ वत्तव्याओ । भावेण उक्कस्सतेउ-जहण्णपम्मलेस्साओ वत्तवाओ। पज्जत्तकाले दव-भावेहि उक्कस्सतेउजहण्णपम्मलेस्साओ । तेसिं चेव अपजत्तकाले दव्येण काउ-सुक्कलेस्साओ, भावेण उक्कस्सतेउ-जहण्णपम्मलेस्साओ त्ति चेव विसेसो।
बम्ह-बम्हुत्तर-लांतव-कापिट्ट सुक्क-महासुक्ककप्पदेवाणं सणक्कुमार-भंगो। णवरि सामण्णेण भण्णमाणे दव्येण काउ-सुक्क-मज्झिमपम्मलेस्साओ, भावेहि मज्झिमा पम्मलेस्सा । पज्जत्तकाले दव-भावेहि मज्झिमा पम्मलेस्सा । अपज्जत्तकाले दवेण
हारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
सानत्कुमार माहेन्द्र देवोंके मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक चारों गुणस्थानोंके आलाप सौधर्म देवोंके आलापोंके समान जानना चाहिए । विशेषता केवल इतनी है कि ऊपर सभी कल्पोंमें स्त्रीवेद नहीं है, अतः एक पुरुषवेद ही कहना चाहिए। उसमें भी ओघालाप कहते समय द्रव्यसे कापोत, शुक्ल, उत्कृष्ट तेज और जघन्य पद्म लेश्याएं कहना चाहिए । भावसे उत्कृष्ट तेज और जघन्य पद्म लेश्याएं कहना चाहिए। पर्याप्तकाल में द्रव्य और भावसे उत्कृष्ट तेज और जघन्य पद्म लेश्याएं होती हैं। उन्हींके अपर्याप्तकालमें द्रव्यसे कापोत और शुक्ल लेश्याएं और भावसे उत्कृष्ट तेज और जघन्य पद्म लेश्याएं होती हैं, इतनी विशेषता है।
ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर, लान्तव-कापिष्ठ और शुक्र महाशुक्र कल्पवासी देवोंके आलाप सानत्कुकुमार देवोंके आलापोंके समान समझना चाहिए। विशेषता यह है कि सामान्यसे आलाप कहने पर-द्रव्यसे कापोत, शुक्ल और मध्यम पद्म लेश्या होती है, तथा भावसे केवल मध्यम पद्मलेश्या होती है। उन्हीं देवोंके पर्याप्तकालमें द्रव्य और भावसे मध्यम पद्मलेश्या होती है।
पापा
नं. १७९
सानत्कुमार माहेन्द्र देवोंके अपर्याप्त आलाप. । गु.जी. प. | प्रा.सं. । ग.। इं का. यो. वे. क. ज्ञा. संय. द. ले. भ. स. सलि. आ. उ. ।
|१|४५कुम १३ द्र.२२५3 वै.मि. पु. कुथु. असं. के. द का.शु. म. क्षा. सं. आहा. साका. कार्म. मति. | बिना. मा.२ अ. क्षायो.. अना. अना.
ते. उ. . प.ज. सासा.
मि.सं.
६.
अप.
पंचे. त्रस..
मि.
श्रुत. अव.
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