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________________ धवलाके अन्तकी प्रशस्ति शताब्दिके मध्य भागके लगभग लिखी गई है। इन्हीं प्रतियोंमेंसे कहीं एक और कहीं दोके प्रशस्त्यात्मक पद्य धवलाकी प्रतिमें और भी बीच बीचमें पाये जाते हैं जिनका परिचय व संग्रह आगे यथावसर देनेका प्रयत्न किया जायगा । धवलाके अन्तकी प्रशस्ति मूडबिद्रीकी ताडपत्रीय प्रतिके प्रसंगमें हमारी दृष्टि स्वभावतः धवलाकी प्राप्त प्रतियों के अन्तम पायी जानेवाली प्रशस्ति पर जाती है । धवलाके अन्तमें धवलाकार वीरसेनाचार्यसे सम्बंध रखनेवाली वे नौ गाथाएं पाई जाती हैं जिनको हम प्रथम भागमें प्रकाशित कर चुके हैं। उन गाथाओंके पश्चात् निम्न लम्बी प्रशस्ति पाई जाती है, जिसके कनाड़ी अंश पूर्वोक्त प्रो. कुंदनगार व प्रो. उपाध्याय द्वारा बड़े परिश्रमसे संशोधित किये गये हैं । शब्दब्रह्मेति शाब्दैर्गणधरमुनिरित्येव राद्धान्तविद्भिः, साक्षात्सर्वज्ञ एवेत्यभिहितमतिभिः सूक्ष्मवस्तुप्रणीतः । यो दृष्टो विश्वविद्यानिधिरित जगति प्राप्तभट्टारकाख्या, स श्रीमान् वीरसेनो जयति परमतवान्तभित्तन्त्रकारः ॥ १ ॥ श्रीचारित्रसमृद्धिमिक्वविजयश्रीकर्मविच्छित्तिपूर्वकं ज्ञानावरणीयमूलनिर्नाशनं भूचक्रेशं बेसकेय्ये संदर्भमुनिवृन्दाधीश्वरकुन्दकुन्दाचार्यतधैर्य [गर्यतेयिने (१)] नाचार्यरोळ्वर्यरु जितमदविनिर्गतमलर्चतुरंगुलचारणद्धिनिरतर्गणधर [रैरेकैतिगे (2) ] गुणगणधरर् यतिपतिगणधररेनिसिद कुंदकुन्दाचार्यर् । अवरन्वयदोळ् सिद्धान्तविदाकरणवेदिगळ् षट्तप्रवणर्द्धिसिद्धिसंजुत्तपारस्तुतरप्प गृथपिच्छाचार्यधैर्यपर.गर्दगांभीर्यगुणोदधिगळुचितशमदमयमतात्पर्यरेने गृद्धपिच्छाचार्यर शिष्यर्बलाकपिच्छाचार्यगुणनन्दिपंडितनिजगुणनन्दिपंडितजनंगळं मेश्चिसि मैगुणद पेसरेसेये विद्वद्गगतिलकर्सकलमुनीन्द्रशिष्यपदार्थदोळर्थशास्त्रदोळु जिनागमदोळु तंत्रदोळु महाचरितपुराणसंततिगळोळ् परमागमदोळ् पेरर्सम दोरे सरि पाटिपासटि समानमेनल् कृतविद्यरारेनुत्तिरे बुधकोटिसंदर्भवीतळदोळु । गुणनन्दिपण्डितशिष्यार्वहितविदर्गे सूनुर्वराशिष्यरोळ तपश्चरणसिद्धान्तपारायणरेणिकेगोळकदिर्वर्तपोविच्छिन्नानंगरेबी महिमेयिनेसदेवाधियेंतंतदारस्वच्छर्दिनकरकिरणमे बेळगे देवेन्द्रसिद्धान्तरु ॥ अन्तुनेगर्तेवेत्तवर शिष्यकदम्बकदोळ् समस्तसिद्धान्तमहापयोनिधियेनिसि तडंबरेगं तपोबलाक्रान्तमनोजरागि मदवर्जितरागि पोगतेवेत्तराशांतं नेगर्द कीर्ति वसुनन्दिमुनीन्द्ररुदात्तवृत्तियिनुदधिगे कलाधरं पुट्टिदनेन्तवर्गे शिष्यरादर् गुणदोळेदडे रविचंद्रसिद्धांतदेवरेंबर् जगद्विशेषकचरितर् । अंतु दयावनीधरकृतोदयनादशशांकनिंदे शार्वरि' गित्तु धरातलमं मत्ते दुर्णयध्वान्तविद्यातमागिरे तदुरि सले पूर्णचन्द्रसिद्धान्तमुनीन्द्र निगदितान्तप्रतिशासनम् जैनशासनम् ।। १ अ. प्रतिमें 'शार्वरिकपराधिगितु ' ऐसा पाठ है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001396
Book TitleShatkhandagama Pustak 02
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1940
Total Pages568
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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