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________________ षट्खंडागमकी प्रस्तावना सामन्त केदार नाकरस, सामन्त निम्बदेव और सामन्त कामदेव । माघनन्दिके शिष्य हुएगंडविमुक्तदेव, जिनके एक छात्र सेनापति भरत थे, व दूसरे शिष्य भानुकीर्ति और देवकीर्ति । गंडविमुक्तदेवके सधर्म भूतकीर्ति विद्यमुनि थे, जिन्होंने विद्वानोंको भी चमत्कृत करनेवाले अनुलोम-प्रतिलोम काव्य राघव-पांडवीयकी रचना करके निर्मल कीर्ति प्राप्त की थी और देवेन्द्र जैसे विपक्ष वादियोंको परास्त किया था। श्रुतकीर्तिकी प्रशंसाके ये दोनों पद्य कनाड़ी काव्य पम्परामायणमें भी पाये जाते हैं। विपक्ष सैद्धान्तिकसे संभव है उन्हीं देवेन्द्रसे तात्पर्य हो, जिनके विषयमें श्वेताम्बर ग्रन्थ प्रभावकचरितमें कहा गया है कि उन्होंने वि० सं० ११८१ में दि० आचार्य कुमुदचन्द्रको वाद में परास्त किया था। इन्हींके अग्रज ( सधर्म ) थे कनकनन्दि और देवचन्द्र । कनकनन्दिने बौद्ध, चार्वाक और मीमांसकों को परास्त किया था, और देवचन्द्र भट्टारकोंके अग्रणी तथा वेताल झोटिंग आदि भूत पिशाचोंको वशीभूत करनेवाले बड़े मंत्रवादी थे। उनके अन्य सधर्म थे माघनन्दि त्रैविद्यदेव, देवकीर्ति पंडितदेवके शिष्य शुभचन्द्र विद्यदेव, गंडविमुक्त वादिचतुर्मुख रामचन्द्र विद्यदेव और वादिवज्रांकुश अकलंक त्रैविद्यदेव । गंडविमुक्तदेवके अन्य श्रावक शिष्य थे माणिक्य भंडारी मरियाने दंडनायक, महाप्रधान सर्वाधिकारी ज्येष्ठ दंडनायक भरतिमय्य हेगडे बूचिमय्यंगलु और जगदेकदानी हेगडे कोरय्य। इन उल्लेखोंसे हमें पद्मनन्दि कुलभूषणके संघ व गणके अतिरिक्त उनकी पूर्वापर सुविख्यात, विचक्षण और प्रभावशाली गुरुपरम्पराका अच्छा ज्ञान हो जाता है । तथा, जो और भी विशेष बात ज्ञात होती है, वह यह कि, हमारे पद्मनन्दिके एक और शिष्य तथा कुलभूषण सिद्धान्तमुनिके सधर्म जो प्रभाचन्द्र ‘शब्दाम्भोरुहभास्कर ' और प्रथित-तर्कग्रन्थकार' पदोंसे विभूषित किये गए हैं; वे संभवतः अन्य नहीं, हमारे सुप्रसिद्ध तर्कग्रन्थ प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्रके कर्ता प्रभाचन्द्राचार्य ही हों। ... यह गुरु परम्परा इस प्रकार पाई जाती है: - गौतमादि (उनकी सन्तानमें) भद्रबाहु चन्द्रगुप्त (उनके अन्वयमें) पद्मनन्दि कुन्दकुन्द (उनके अन्वयमें) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001396
Book TitleShatkhandagama Pustak 02
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1940
Total Pages568
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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