________________
४९४] छक्खंडागमे जीवद्राणं
[ १, १. सण्णिणीओ असण्णिणीओ, आहारिणी, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा।
पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तजोणिणीणं भण्णमाणे अस्थि दो गुणहाणाणि, दो जीवसमासा, छ अपज्जत्तीओ, पंच अपज्जत्तीओ, सत्त पाण सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिरिक्खगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, दो जोग, इत्थिवेद, चत्तारि कसाय, दो अण्णाण, असंजम, दो दंसण, दव्वेण काउ-सुक्कलेस्सा, भावेण किण्ह-णील-काउलेस्सा; भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, मिच्छत्तं सासणसम्मत्तमिदि दो सम्मत्तं, सणिणी असण्णिणी, आहारिणी अणाहारिणी, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा । ___पंचिंदियतिरिक्खजोणिणी-मिच्छाइट्ठीणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणहाणं, चत्तारि
आहारक, साकारोपयोगिनी और अनाकारोपयोगिनी होती हैं।
___ उन्हीं पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमतियोंके अपर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि ये दो गुणस्थान, संज्ञा-पर्याप्त और असंही-अपर्याप्त ये दो जीवसमास, संडीके छहों अपर्याप्तियां, असंज्ञीके पांच अपर्याप्तियां, संज्ञी और असंशीके सात सात प्राण, चारों संशापं, तिर्यंचगति, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, औदारिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग ये दो योग, स्त्रीवेद, चारों कषाय, कुमति और कुश्रुत ये दो अज्ञान, असंयम, चक्षु और अचक्षु ये दो दर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ललेश्याएं, भावसे कृष्ण, नील और कापोत लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिकः मिथ्यात्व और सासादनसम्यक्त्व ये दो सम्यक्त्य, संशिनी, असंक्षिनी: आहारिणी, अनाहारिणीः साकारोपयोगिनी और अनाकारोपयोगिनी होती हैं।
पंचेन्द्रिय तिर्यंच मिथ्यादृष्टि योनिमतियोंके आलाप कहने पर-एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, संशी-पर्याप्त, संज्ञी-अपर्याप्त, असंझी-पर्याप्त और असंझी-अपर्याप्त ये चार जीव
नं. ८९
पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमतीके अपर्याप्त आलाप.
पंचेतिया । गु.| जी. प. प्रा. सं. ग. इं. का. | यो. वे. क. ज्ञा. संय. द. ले. भ.स. संझि. | आ. उ. | २२ ६अ. ७ ४१ १ १ २ १ ४ २ १ २ द्र. २ २.२ २ २ २ मि.सं.अ. ५, ७, ति. त्रस औ.मि. स्त्री कुम. असं. चक्षु. का. म. मि. सं. आहा. साका. सा. असं.,
कार्म. कुश्रु. अच. शु. अ. सा. असं. | अना. अना. |
भा.३ अशु.
पचे. .
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org