________________
४८० ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १. तेसिं चेव पज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि एयं गुणट्टाणं, एओ जीवसमासो, छ पजत्तीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिरिक्खगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, णव जोग, तिण्णि वेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि णाण, असंजम, तिण्णि दसण, दव्व-भावहिं छ लेस्साओ, भवसिद्धिया, तिण्णि सम्मत्तं, सणिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा ।
तेसिं चेव अपजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि एवं गुणहाणं, एओ जीवसमासो, छ अपजत्तीओ, सत्त पाण, चत्तारि सण्णा, तिरिक्खगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, वे जोग, पुरिसवेद, चत्तारि कसाय, तिणि णाण, असंजम, तिण्णि दसण, दब्वेण काउसुक्कलेस्सा, भावेण जहणिया काउलेस्सा, भवसिद्धिया, उवसमसम्मत्तेण विणा दो
. उन्हीं सामान्य तिर्यंच असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंके पर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-एक अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान, एक संशी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों संज्ञाएं, तिर्यंचगति, पंचेन्द्रियजाति, सकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग और औदारिककाययोग ये नौ योग, तीनों वेद, चारों कषाय, आदिके तीन ज्ञान, असंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक ये तीन सम्यक्त्व; संज्ञिक, आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
उन्हीं सामान्य तिर्यंच असंयतसम्यग्दष्टि जीवोंके अपर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहन पर-एक अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान, एक संज्ञी-अपर्याप्त जीवसमास, छहों अपर्याप्तियां, सात प्राण, चारों संज्ञाएं, तिथंचगति, पंचेन्द्रियजाति, सकाय, औदारिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग ये दो योग, पुरुषवेद, चारों कषाय, आदिके तीन शान, असंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ल लेश्या, भावसे जघन्य कापोतलेश्याः भव्यसिद्धिक, उपशमसम्यक्त्वके घिना क्षायिक और क्षायोपशमिक ये दो सम्यक्त्व होते हैं।
-
७०
सामान्य तिर्यंच असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंके पर्याप्त आलाप.
। गु. जी. प. प्रा सं. ग. | इं.का.
यो.
वे. क.
शा.
संय.
द.
ले.
भ.
स.
संज्ञि.
आ.
उ.
अवि. -
ति.
पंचे. . वस.
म. ४ व. ४
मति. असं. के.द. भा.६ म. औ. श्रुत. पिना।
क्षा. अव.
क्षायो.
सं. आहा. साका.|
अना.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org